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द्वितीय अधिकार सोमा-भौम का अर्थ व्यन्तरदेव वा भूमि में होने वाली वस्तु का नाम है । जिस वस्तु में व्यन्तरों के आवास तथा भूमिगत वस्तु आदि का वर्णन भौमा है।
व्रतादिक-पंच महाव्रत आदि मुनि धर्म का तथा पंचाणुव्रत आदि पावक धर्म का विस्तार पूर्वक वर्णन जिस में है उस वस्तु का नाम तादिक है।
सर्वार्थ-जिस वस्तु में सर्व अर्थ वा सर्व प्रयोजन का वर्णन है वह सर्वार्थ है।
जिसमें श्रावक और साधुओं के कल्प का निर्णय किया जाता है, वह कल निर्णय है । करने योग्य क्रियाओं का निर्णय किया जाता है।
अतीत काल में जितने सिद्ध हुए हैं तथा अतीत काल में जीव किस प्रकार कर्मों से बँधे हुए हैं आदि का कथन करने वाला अतीत काल सिद्ध बद्ध है।
भविष्य काल में जीव किस प्रकार सिद्ध होगा और किन-किन कारणों में भविष्य में कर्म बाँधेगे इत्यादि का कथन है, वह अनागत काल सिद्ध बद्ध है।
पूर्वान्त, अपरान्त, ध्रुव, अध्रुव, च्यवनलब्धि, अघ्र वसंप्रणिधि, अर्थ, भोमावय, सर्वार्थकल्पनीय, ज्ञान, अतीतकाल, अनागत काल, सिद्धि और उपाधि ये नाम भी श्रुतभक्ति में कहे गये हैं ।
पंचमवत्थुचउत्थपाहुडयस्माणुयोगणामाणि । कियवेयणे तहेव फंसण कम्मपडिकं तह ।। ४४॥
पंचमवस्तुचतुर्थप्राभृतस्यानुयोगनामानि ।
.........."तथैव स्पर्शनं कर्म प्रकृतिकं तथा ॥ बंधणणिबंधणपाकमाणुक्कममहब्भुदयमोक्खा । संकम लेस्सा च तहा लेस्साए कम्म परिणामा ॥ ४५ ॥ बंधन निबंधनोपक्रमानुपक्रमाभ्युदय मोक्षाः। संक्रमः लेश्या च तथा लेश्यायाः कर्म परिणामाः ॥
१. इन चौदह वस्तुओं का खुलासा कहीं पर भी नहीं मिला है। यह अर्थ इनके ___शब्दों के संकेत से किया है । युक्त हो तो रखना, नहीं तो मिटा देना ।