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अंगपण्णत्ति निबकंजीरविषहालाहलसदृशश्चतुर्विधो ज्ञेयः।
अनुभागोऽशुभानां प्रदेशबन्धोऽपि बहुभेदः॥ शुभ और अशुभ के भेद से कर्म प्रकृति दो प्रकार की है।
उन कर्मों के फल दान शक्ति को अनुभाग कहते हैं अथवा ज्ञानावरणादि कर्मों का जो कषायादि परिणाम जनित शुभ और अशुभ रस है वह अनुभाग बन्ध है।
शुभ प्रकृतियों का अनुभाग बन्ध गुड़-खाँड, शर्करा और अमृत के भेद से चार प्रकार का है। और अशुभ कर्म प्रकृतियों का अनुभाग बन्ध नीम्ब, कांजी, विष और हलाहल विष के समान है ।। ९२-९३ ॥
विशेषार्थ घातियाँ और अघातियां के भेद से कर्म दो प्रकार के हैं। जो जीव के ज्ञानादि अनुजीवी ( अस्ति स्वरूप ) गुणों का घात करते हैं वे घातिया कहलाते हैं । वे चार हैं-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय।
जीव के अमूर्त्तत्व आदि प्रतिजीवी गुणों के घातक कर्म अघातिया कहलाते हैं । वे चार हैं-आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय ।
घातियाँ कर्म के दो भेद हैं-सर्वघाति और देशघाति । मिथ्यात्व, सम्यक्त्व मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ । अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ। प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ । केवलज्ञानावरणी, केवलदर्शनावरणी और पाँच निद्रा ये २१ सर्वघाति प्रकृतियाँ हैं। शेष २६ प्रकृतियाँ देशघाति हैं। घातियाँ कर्मों में फल देने की शक्ति चार प्रकार की है।
लयदारदुसिलासमभेया ते विल्लिदारणं तस्स । इगिभागो बहुभागाढिसिला देशघादिघादीणं ॥१४॥
लतादार्वस्थिशिलासमभेदास्ते वल्लोदावनन्तस्य ।
एकभागो बहुभागा अस्थिशिला देशघातिघातिनां ॥ पयाणि-१८००००००।
इति कम्मपवादपुव्वं गदं-इति कर्मप्रवादपूर्वगतं । लता ( बेल ) काठ ( लकड़ी) हड्डी और पत्थरों के समान लता आदि में जैसे क्रम से अधिक-अधिक कठोरपना है, उसी प्रकार कर्मों के