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अंगपण्णत्ति क्योंकि उस दिन वह गली द्वितीय चन्द्र और सूर्य से भ्रमित होती है। पन्द्रहवें दिन चन्द्रमा और एक सौ चौरासीवें दिन सूर्य अपनी-अपनी अन्तिम गली में पहुंच जाते हैं। वहाँ से पुनः भीतर की गली में लौटते हैं और क्रम से एक-एक दिन में एक-एक गली का अतिक्रमण करते हुए एक महीने में चन्द्रमा और एक वर्ष में सूर्य पुनः प्रथम गली में प्रवेश करता है।
जम्बूद्वीप सम्बन्धी सूर्य और चन्द्रमा एक सौ अस्सी योजन तो जम्बूद्वीप में रहते हैं और ३३०४८ योजन लवणसमुद्र में संचार करतेहैं।
अठासी ग्रहों का एक ही चार क्षेत्र है, अर्थात् प्रत्येक चन्द्र सम्बन्धी अठासी ग्रहों का पूर्वोक्त ही चार क्षेत्र है चन्द्रमावाली वीथियों के बीच में ही यथायोग्य ग्रहों की वीथियाँ हैं वे ग्रह इन परिधियों में संचार करते हैं । ___ चन्द्रमा की पन्द्रह गलियों के मध्य में अट्ठाईस नक्षत्रों की आठ गलियाँ होती हैं। अभिजित, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषार पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी ये बारह नक्षत्र चन्द्र के प्रथम मार्ग में संचार करते हैं । चन्द्र के तृतीय पथ में पुनर्वसु और मघा, सातवीं वीथी में रोहिणी और चित्रा, छट्ठी गली में कृतिका, आठवें पथ में विशाखा, दशवें में अनुराधा, ग्यारहवें में ज्येष्ठा, पन्द्रहवें मार्ग में हस्त, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य और आश्लेषा ये आठ नक्षत्र संचार करते हैं। शेष द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, द्वादश, त्रयोदश और चतुर्दश इन सात चन्द्र वीथियों में कोई भी नक्षत्र संचार नहीं करते हैं। ये नक्षत्र मन्दर पर्वत की प्रदक्षिणा क्रम से अपने-अपने मार्गों में ही नित्य संचार करते हैं अर्थात् नक्षत्र और तारे एक ही मार्ग से संचार करते हैं, मार्गान्तर नहीं होते । चन्द्र से सूर्य, सूर्य से ग्रह, ग्रहों से नक्षत्र और नक्षत्रों से भी तारा शीघ्रगमन करने वाले होते हैं । जम्बूद्वीप में सूर्य के संचार करने के मार्ग एक सौ चौरासी हैं, लवण समुद्र में तीन सौ अड़सठ, धातकी खण्ड में ग्यारह सौ चार, कालोदधि में तीन हजार आठ सौ चौसठ और पुष्करार्द्धद्वीप में छः हजार छह सौ चौबीस हैं। जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं, लवण समुद्र में चार, धातकीखण्ड में बारह, कालोदधि से ब्यालीस और पुष्पकरार्द्ध में बहत्तर हैं। इतने ही चन्द्रमा पूर्वोक्त नक्षत्र, ग्रह और तारों से युक्त हैं, इन सब में जिन मन्दिर हैं।
चन्द्रनगर के नगरतल में चार प्रमाणांगुल नीचे जाकर राहु विमान