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द्वितीय अधिकार प्रकृति अनुयोग द्वार-प्रकृति, शोल और स्वभाव ये एकार्थवाची हैं। ज्ञानावरणादि प्रकृति उनका स्वभाव आदि का वर्णन जिस अनुयोग द्वार में है वह प्रकृति अनुयोग द्वार है। ___ प्रत्येक अनुयोग में निक्षेप आदि १६ अधिकारों के द्वारा वस्तु की सिद्धि की जाती है, इसमें भी १६ अधिकार हैं । इनके नाम और स्वरूप संक्षेप में इस प्रकार हैं
प्रकृति निक्षेप-संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रूप विकल्प से हटाकर जो निश्चय में स्थापित करता है वह निक्षेप है।
प्रकृति निक्षेप चार प्रकार का है-नाम प्रकृति, स्थापना प्रकृति, द्रव्यप्रकृति और भाव प्रकृति ।
प्रकृति नय-कौन से नय की अपेक्षा कौनसा निक्षेप होता है। जैसेनेगम, व्यवहार और संग्रह नय चारों निक्षेपों को स्वीकार करता है । ऋजुसूत्रनय स्थापना निक्षेप को छोड़कर शेष तीन निक्षेप का कथन करता है।
शब्दनय नाम प्रकृति निक्षेप और भाव प्रकृति निक्षेप को स्वीकार करता है । इत्यादि कथन नय को अपेक्षा है।
जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया की अपेक्षा के बिना किसी का प्रकृति नाम रखना नामप्रकृति है उसके भी जीव, अजीव जीवाजीव आदि आठ भेद हैं। ___ किसी वस्तु में यह वह प्रकृति है ऐसा संकल्प करना स्थापना प्रकृति है।
द्रव्य प्रकृति आगम और नोआगम भेद से दो प्रकार की है। मुख्यतया प्रकृति अनुयोग द्वार आगम द्रव्य प्रकृति और नोआगम द्रव्य प्रकृति का कथन है।
जिस ग्रन्थ में प्रकृति का कथन है-वह आगम द्रव्य प्रकृति है क्योंकि आगम ग्रन्थ श्रुतज्ञान और द्वादशांग एकार्थवाचो हैं आगम को जानने वाला परन्तु उसके उपयोग से रहित जीव आगम द्रव्य प्रकृति है।
नोआगम द्रव्य प्रकृति दो प्रकार को है-कर्म प्रकृति और नोकर्म प्रकृति । ___ नोआगम नोकर्म द्रव्य प्रकृति अनेक प्रकार की है। उसकी यहाँ मुख्यतया नहीं है।
नोआगम द्रव्य प्रकृति आठ प्रकार को है-ज्ञानावरणीय, दर्शनावर. प्रीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ।