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अंगपण्णत्ति
काल | ईश्वर | आत्मा | नियति | स्वभाव जीव | अजीव | आस्रव | बंध | संवर | निर्जरा| मोक्ष । स्वतः | परतः नास्ति
नियति | काल जीव | अजीव | आस्रव बंध | संवर | निर्जरा | मोक्ष |
नास्ति
॥ इस प्रकार अक्रियावादी का कथन समाप्त हुआ ।
__ अब अज्ञानवाद का कथन करते हैं को नाणइ णव अत्थे सत्तमसत्तुभयमवच्चमेव इदि । अवयणजुद सत्तत्तयं इदि भंगा होति तेसट्ठी ॥ २६ ॥
को जानाति नवार्थान् सत्वमसत्वमुभयमवक्तव्यमेवेति ।
अवचनयुतं सप्ततयं इति भंगा भवन्ति त्रिषष्टिः॥ अस्ति | नास्ति। उभय अवक्तव्य अ. अ. | ना. अ. अ.ना.अ. जीव | अजीव पुण्य पाप आस्रव बन्ध संवर निर्जरा मोक्ष |
जीवादिक नवपदार्थों में से एक-एक के सात भंग होते हैं जैसे 'जीव अस्ति रूप है ऐसा कौन जानता है' यह एक भंग हुआ। इसी प्रकार जीव 'नास्ति रूप है ऐसा कौन जानता है।' (२) 'जीव' अस्ति नास्ति रूप है ऐसा कौन जानता है। (३) 'जीव' अवक्तव्य है ऐसा कौन जानता है। (४) 'जीव' अस्ति अवक्तव्य है ऐसा कौन जानता है। (५) 'जीव' नास्ति अवक्तव्य है ऐसा कौन जानता है। (६) 'जीव' अस्ति नास्ति अवक्तव्य है ऐसा कौन जानता है। (७) इस प्रकार जीव पदार्थ के सात भंग हैं, उसी प्रकार अजीव आदि के भी सात भंग होते हैं। सबका जोड़ करने से अज्ञानवादी के वेसठ भंग होते हैं । अर्थात् नौ पदार्थों का अस्ति आदि सात भेदों से गुणा करने पर ६३ भेद होते हैं ॥ २६ ॥