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अंगपण्णत्ति
विशेषार्थ अहिंसा महाव्रत-जीवन पर्यन्त, त्रस, स्थावर जीवों का मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से विघात करना रूप द्रव्य हिंसा और राग द्वेषमय भाव हिंसा करने का त्याग करना अहिंसा महाव्रत है।
सत्य महाव्रत-मन से सत्य सोचना, वाणी से सत्य बोलना और काय से सत्य आचरण करना तथा कर्कश, सावद्य वचनों के उच्चारण का त्याग करना सत्य महाव्रत हैं। । अचौर्य महाव्रत-चेतन ( गाय भैंस आदि ) अचेतन (घर, सोना, चाँदी आदि ) चेतनाचेतन ( वस्त्राभूषण पहने हुए स्त्री आदि ) किसी भी वस्तु को स्वामी की आज्ञा बिना ग्रहण नहीं करना अचौर्य महाव्रत है। 1. ब्रह्मचर्य महावत-काम वृत्ति और वासना का नियमन करके चेतन अचेतन सर्व स्त्री मात्र के प्रति रागोद्रेक का त्याग करना ब्रह्मचर्य महा-व्रत है।
अपरिग्रह महाव्रत-१० प्रकार के बाह्य और १४ प्रकार के अन्तरंग परिग्रह का त्याग करना अपरिग्रह महावत है ।
गुरुओं के भी गुरु महान् पुरुष जिनकी साधना करते हैं, जिनका पालन करते हैं, इसलिए इनको महाव्रत कहते हैं ।
सम-प्रमाद रहित, इति-प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। संसारी प्राणी की प्रवृत्ति पाँच प्रकार की होती है-चलना, बोलना, खाना ( भोजन करना), रखना, उठाना और मल-मूत्र का त्याग करना । संसार के सारे कार्य इन पाँच में गभित हो जाते हैं। इन पाँचों विषय में प्रमाद रहित होकर कार्य करना ही पंच समिति है।
ई समिति-जीवों की रक्षा के लिए तथा हिंसा पाप से बचने के लिए सावधानी के साथ चार हाथ आगे की भूमि देखते चलना।
भाषा समिति-प्रमाद रहित होकर हित, मित, प्रिय वचन बोलना।
एषणा समिति-उद्गमादि छयालीस दोष टालकर उच्चकुल श्रावक के घर शुद्ध आहार करना ।
आदाननिक्षेपण समिति-प्रमाद रहित होकर, देखभाल कर निर्जन्तु स्थान में पीछी-कमण्डलु, शास्त्र आदि को रखना-उठाना।