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द्वितीय अधिकार ... चतुर्दशपूर्वाङ्ग प्रज्ञप्तिः
चौदह पूर्वांग प्रज्ञप्ति का कथन परियम्मं पंचविहं परिये कम्माणि गणिदसुत्ताणि । जत्थ तदो तं भणियं सुणह पयारे हु तस्सावि ॥ १ ॥
परिकर्म पंचविधं परितः कर्माणि गणितसूत्राणि ।
यत्र ततस्तद्भणितं श्रुणुत प्रकारान् हि तस्यापि ॥ दृष्टिवाद अंग के पाँच अधिकार हैं, परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, चूलिका और पूर्वगत । इनमें प्रथम परिकर्म के लक्षण को कहते हैं।
चारों तरफ से कर्मों का गणित करण सूत्रों का जिसमें कथन है उसको परिकर्म कहते हैं । अर्थात् जिसमें कर्मों का तथा क्षेत्र (द्वीप, समुद्र आदि) का वर्णन है । इसके चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति और व्याख्या प्रज्ञप्ति ये पाँच भेद कहे हैं। उसके प्रकारों का कथन करता हूँ। ये भव्य, तुम सावधानीपूर्वक सुनो ॥ १॥
___ चन्द्रप्रज्ञप्ति का कथन चन्दस्सायु विमाणे परिया रिद्धी च अयण गमणं च । सयलद्धपायगहणं वण्णेदि वि चंदपण्णत्ती ॥२॥ चन्द्रस्यायुः विमानानि परिवारमृद्धि च अयनं गमनं च । सकलार्द्धपादग्रहणं वर्णयत्यपि चन्द्रप्रज्ञप्तिः ॥ छत्तीसलक्खपंचसहस्सपययाण चंदपण्णत्ति ।
षशिल्लक्षपंचसहस्रपदानां चन्द्रप्रज्ञप्तिः। पद ३६०५००० । श्लोकाः १८४१७३९०६०५०७५०० । वर्ण ५८९३५६४९९३६२२४००००।
जो चन्द्रमा की आयु, विमान, परिवार, ऋद्धि, अयन, गमन, हानिवृद्धि, ऊँचाई, सकलांश, अर्धाश, चतुर्थांश का ग्रहण आदि का वर्णन करता है वह चन्द्रप्रज्ञप्ति नामक परिकर्म है। जैसे चन्द्रमा को आयु एक पल्य एवं एक लाख वर्ष की है। एक चन्द्रमा का परिवार विमानों का परिमाण देवांगना आदि का कथन है ।। २ ॥
चन्द्रप्रज्ञप्ति के पदों का प्रमाण छत्तीस लाख, पाँच हजार है। इसके श्लोकों की संख्या एक शंख, चौरासी नील, सत्रह खरब, उनतालीस अरब,