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प्रथम अधिकार
रमण करता है । इसमें मग्न होता है, वह संसार दावानल की ज्वालाओं को प्राप्त नहीं होता । शास्त्र समुद्र में रमण करने वालों को संसार दुखाग्नि स्पर्श नहीं कर सकती । वह सांसारिक दुःखों से छूट जाता है ।। ७५ ।।
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जिनशासन में कथित सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की तप के द्वारा भावना करके मोक्ष को प्राप्त करते हैं । वह सब श्रुत का माहात्म्य है, जानना चाहिए । अर्थात् श्रुत के प्रभाव से मुक्ति को प्राप्त करता है ।। ७६ ।।
मैंने इन ग्यारह अंग की तथा इनके पदों की प्रमाद दोष से जो कुछ भी विरुद्ध प्ररूपणा हुई हो, सुयोगीजन इसकी शोधना करें | इसको शुद्ध करें ॥ ७७ ॥
प्ररूपणा की है उसमें अन्यथा कहा गया हो
शुभचन्द्राचार्य ने इस गाथा में अपनी लघुता दिखाई है कि मैं छद्मस्थ हूँ, छद्मस्थ के द्वारा त्रुटि होना सम्भव है । अतः ज्ञानीजन इसका संशोधन करें । मेरी त्रुटियों पर मुझे क्षमा प्रदान करें ।
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॥ इस प्रकार अंग प्ररूपणा नामक प्रथम अधिकार सतहत्तर गाथाओं में समाप्त हुआ ।