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प्रथम अधिकार
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चतुष्टय की अपेक्षा अस्ति है। यह नित्य है, यह अनित्य है। इस प्रकार अजीव आदि के भेद हैं । जीव, अजीव आदिका अर्थ सुगम है।
कालवाद-काल ही सबको उत्पन्न करता है अर्थात् उत्पन्न होना, मरना, शयन करना, खाना, पीना सर्व कालाधीन है ऐसा एकान्त मानना कालवाद नामक मिथ्यात्व है।
आत्मा अज्ञानी है—ईश्वर से प्रेरित होकर स्वर्ग नरक में जाता है। सुख-दुःख भी ईश्वरकृत है, आत्मा कुछ नहीं करते हैं यह ईश्वरवाद है ।
संसार में एक ही महान् आत्मा है, वहो पुरुष है, वही देव है, आत्मा ही सर्व व्यापक है, सर्वांग में छुपा हुआ है, अर्थात् शरीर सबको दोखता है, परन्तु आत्मा किसी को नहीं दीखता है। इत्यादि कथन करना आत्मवाद नामक मिथ्यात्व है।
जो जिस समय, जिस नियम से जैसा होता है वह उस समय वैसा उसी नियम से होता है । ऐसा मानना नियतवाद नामक मिथ्यात्व है ।
कंटक, पत्थर आदि जितने पदार्थ हैं उनका तीक्ष्ण होना, कटु होना, मधुर होना आदि सर्व स्वभाव से ही होता है। निर्हेतुक सर्व वस्तु को मानना स्वभाववाद है।
इस प्रकार क्रियावादियों के एक सौ अस्सी भेद होते हैं। क्रियावाद को मानने वाले क्रियावादियों के यह नाम हैं। कौत्कल, कंठेविद्धि, कौशिक, हरिश्मश्रु, मांधपिक, रोमश, मुंड और आश्वलायण आदि ।
यह क्रियावादी केवल क्रिया को ही प्रमुख मानते हैं।
अकिरियावायदिट्टीणं मरीचि-कविल-उलूय-गग्ग-वग्घभूइ-वदुलिमाठर-मोगलायणादोणं चउरासीदि (८४)
अक्रियावाददृष्टीनां मरीचि-कपिल-उलूक-गार्ग-व्याघ्रभूति-वादबलिमाठर-मौद्गलायनादीनां चतुरशीतिः (८४) ___ अक्रियावादियों के चौरासी भेद हैं। वह इस प्रकार हैं-क्रियावादी 'अस्तिरूप' से सर्व पदार्थ मानता है, परन्तु अक्रियावादी सर्व पदार्थों को 'नास्ति' रूप मानता है। अतः सर्व प्रथम 'नास्ति' पद लिखना। उसके 'स्व' और 'पर' पद लिखना। उसके ऊपर पुण्य-पाप को छोड़कर जीवादि सात पदार्थ लिखना, उनके ऊपर कालवाद, आत्मवाद, नियतिवाद, स्वभाववाद और ईश्वरवाद लिखना। इस प्रकार इन चार पंक्तियों को परस्पर गुणा करने से १४२४२४७४५ = ७० भंग होते हैं।