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प्रथम अधिकार
२९ संक्षेप से प्रतिमाओं का स्वरूप दर्शनप्रतिमा-अष्टमूलगुण' धारण, सप्तव्यसन का त्याग, अभक्ष्य भक्षण नहीं करना, शास्त्रोक्त अन्तराय का पालन करना तथा संसार, शरीर और पञ्चेन्द्रिय जन्य विषयों से विरक्त होना तथा पंच परमेष्ठी की भक्ति में लीन होना, दर्शनप्रतिमा है। इस प्रतिमा का पालन करने के लिए सम्यग्दर्शन की परम आवश्यकता है और तत्त्व श्रद्धान रूप सम्यग्दर्शन को निर्मल करने के लिए पानी छानकर पीना, रात्रि में चारों प्रकार के आहार का, सप्तव्यसन का तथा अष्टमूलगुणों का निरतिचार पालन करना चाहिए।
व्रत प्रतिमा-दर्शन प्रतिमा की क्रिया के साथ पाँच अणुव्रत, तीन गणव्रत और चार शिक्षाव्रतों का निरतिचार पालन करना। इसमें पाँच अणुव्रतों का निरतिचार पालन होता है और सात शील ( तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत) में अतिचार लग सकता है।
सामायिक प्रतिमा-तीनों संध्याओं के समय मन, वचन, काय को शद्ध कर जिन मन्दिर अथवा अपने घर में वा अन्य पवित्र स्थान में पूर्व वा उत्तर दिशा में मुख करके जिनधर्म, जिनवाणी, जिन बिम्ब, जिनालय और पंचपरमेष्ठी की वन्दना करना है। जिसमें चार आवर्तन, तीन शिरोनति, दो नमस्कार करके देव वन्दना की जाती है तथा आर्त-रौद्रध्यान का परित्याग कर अपनी आत्मा का चिन्तन किया जाता है।
प्रोषध प्रतिमा-अष्टमी और चतुर्दशी के दिन उपवास करना वा नोरस, एक बार भोजन करना अथवा सप्तमी एवं त्रयोदशी को एकाशन करके अष्टमी एवं चतुर्दशी को उपवास करना।
सचित्तत्याग प्रतिमा--सचित्त वनस्पति, जल आदि को नहीं खाना ।
रात्रिभुक्त व्रत-दिवा मैथुन का त्याग तथा सूर्योदय के ४८ मिनट तक और सूर्यास्त के ४८ मिनट पूर्व आहार का त्याग करना ।
ब्रह्मचर्य व्रत प्रतिमा-मन, वचन और काय से स्त्री मात्र को अभिलाषा नहीं करना, पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना ।
१. वट फल, पीपल फल, उदम्बर, गूलर और अंजीर इन पाँच उदम्बर फल ___का त्याग तथा मद्य, मांस, मधु का त्याग । २. शराब पीना, मांस खाना, जुआ खेलना, शिकार खेलना, वेश्या सेवन, पर
स्त्री रमण और चोरी करना ये सप्त व्यसन कहलाते हैं ।