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प्रथम अधिकार
३५ अनुत्तरोपपादाङ्गस्य पदानि--९२४४०००। श्लोकाः-४७२२६१७४४१४६०००। अक्षराणि--१५११२३७५८११६६७००० ।
इदि अणुत्तरोववादं णवमं अङ्गं गदं--इत्यनुत्तरोपपादं नवमं अंग गतं ।
अनुत्तरोपपादिक दशांग में तीन शून्य चार चार दो नौ ( बानबे लाख चवालीस हजार ( ९२४४००० ) पद हैं। उपपाद जन्म वालों को औपपादिक कहते हैं। विजयादि पाँच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने से अनुत्तरोपपादिक कहलाते हैं ॥ ५२ ॥
प्रत्येक तीर्थंकरों के समय में उपलब्ध ( प्राप्त ) किया है माहात्म्य को जिन्होंने ऐसे ध्यान में लीन, दश दश महामुनि घोर उपसर्ग को सहन कर विधिपूर्वक प्राणों को छोड़कर विजयादि अनुत्तरों में उत्पन्न होते हैं, जो स्वभाव से सुखी हैं उनका वर्णन जिसमें पाया जाता है, उसको अनुत्तरोपपादिक दशांग कहते हैं। जैसा वर्द्धमान के तीर्थ में १. ऋजुदास, २. शालिभद्र, ३. सुनक्षत्र, ४. अभय, ५. धन्यकुमार, ६. श्रेष्ठवारिषेण, ७. नन्दन, ८. नन्द, ९. चिलातपुत्र और कार्तिकेय दश मुनि घोर उपसर्ग को सहन कर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि इनमें उत्पन्न हुए हैं, उसी प्रकार अन्य तेईस तीर्थंकरों के तीर्थ में भी दश दश मुनि घोरोपसर्ग सहन कर विजयादि पाँच अनुत्तरों में उत्पन्न होते हैं । हे भव्य जीवो ! तुम उनको नमस्कार करो ॥ ५३-५४-५५ ॥
विशेषार्थ उपपाद जन्म जिनका प्रयोजन है वे औपपादिक कहलाते हैं। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पाँच अनुत्तर कहलाते हैं । अनुत्तरों में उत्पन्न होने से अनुत्तरोपपादिक कहलाते हैं ।
चेतन और अचेतन कृत के भेद से उपसर्ग दो प्रकार का होता है। तिर्यञ्च कृत, मानव कृत और देव कृत के भेद से चेतन कृत उपसर्ग तीन प्रकार का है। इस प्रकार चेतन और अचेतन कृत चार प्रकार के घोरोपसर्ग को सहन कर पाँच अनुत्तरों में उत्पन्न होने वाले मुनिगणों का वर्णन अनुत्तरोपपादिक अङ्ग में पाया जाता है ।
अनुत्तरोपपादिक दशांग की पद संख्या बानबे लाख, चवालीस हजार ( ९२४४००० ) है। श्लोक संख्या सैंतालीस नील, बाईस खरब, इकसठ