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अंगपष्णति अरब, चौहत्तर करोड़, इकतालीस लाख, छियालीस हजार ( ४७,२२,६१, ७४,४१,४६००० ) है। इस अङ्ग के अक्षरों की संख्या पन्द्रह शंख, ग्यारह नील, तेईस खरब, पचहत्तर अरब, ईक्यासी करोड़, सोलह लाख, सड़सठ हजार ( १५,११,२३,७५,८१,१६,६७०००) प्रमाण है । ॥ इस प्रकार अनुत्तरोपपादिक अङ्ग का कथन समाप्त हुआ ।।
प्रश्नव्याकरण अंग का कथन पहाणं वायरणं अंग पयाणि तियसुण्णसोलसियं । तेणवदिलक्खसंखा जत्थ जिणा वेत्ति सुणह जणा ॥५६॥
प्रश्नानां व्याकरणमग पदानि त्रिशून्यषोडश ।
त्रिनवतिलक्षसंख्या यत्र जिना बुवन्ति शृणुत जनाः॥ इसमें प्रतिपाद्य विषय का कथन पण्हस्स दूदवयणण?पमुट्ठिमणुत्थयसरुवस्स । धादुणरमूलजस्स वि अत्थो तियकालगोचरयो ॥ ५७ ॥
प्रश्नस्य दूतवचननष्टप्रमुष्टिमनःस्थस्वरूपस्य ।
धातुनरमूलजास्यपि अर्थस्त्रिकालगोचरः॥ धणधण्णजयपराजयलाहालाहादिसुहदुहं णेयं । जोवियमरणत्यो वि य जत्थ कहिन्जइ सहावेण ॥ ५८ ॥
धन्यधान्यजयपराजयलाभालाभादिसुखदुःखं ।
जीवितमरणार्थोऽपि च यत्र कथ्यते स्वभावेन ॥ जिनेन्द्र भगवान् ने जिसमें तिरानबे लाख, सोलह हजार पद कहे हैं, उसको प्रश्न व्याकरण अङ्ग कहते हैं भव्यो सुनो ।। ५६ ।।
प्रश्न का अर्थ है पृच्छा ( पूछना ) और व्याकरण का अर्थ है व्याख्यान-अर्थात् जिसमें प्रश्न का व्याख्यान किया जाता है उसको प्रश्नव्याकरण कहते हैं।
दूत वचन, नष्ट, प्रमुष्टि, मनस्थ चिन्ता का स्वरूप, धातु, नर और मूलज प्रश्न को त्रिकाल गोचर धन-धान्य, जय-पराजय, लाभ-अलाभ, सुख-दुखादि तथा जीवित-मरण अर्थ का स्वभाव से जिसमें कथन किया जाता है वह प्रश्न व्याकरण है ।। ५७-५८ ॥