________________
प्रथम अधिकार
२५ प्राप्ति, बाल अवस्था आदि सारो प्रत्यक्ष गोचर व्यवस्थाओं का नाश हो जाता है।
द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा आत्मा एक है क्योंकि चैतन्य गुण सामान्य सब में एक सा पाया जाता है। और प्रत्येक आत्मा के सुख-दुःख भिन्न होने से आत्मा अनेक भी है । अपने स्वरूप की अपेक्षा वक्तव्य है और पर स्वरूप की अपेक्षा अवक्तव्य है। ___ संज्ञा, प्रयोजन, लक्षण आदि की अपेक्षा आत्मा अपनी गुण पर्यायों से आत्मा भिन्न ( पृथक् ) है। और द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा अभिन्न है। इस प्रकार नाना प्रकार के देव, राजा, राज ऋषि आदि के विषय में अनेक प्रकार के संशय को निवारण करने के लिए जो प्रश्न पूछते हैं उनका जो प्रत्युत्तर दिया जाता है, उसको व्याख्याप्रज्ञप्ति कहते हैं। __इस विपाकपण्णत्ति । व्याख्याप्रज्ञप्ति ) अंग के दो लाख अट्ठाईस हजार ( २२८००० ) पद हैं और ग्यारह नील चौसठ खरब एक्यासी अरब उनहत्तर करोड़, सैंतीस लाख दो हजार श्लोक संख्या है।
इस अंग के अक्षरों की संख्या ३,७२,७४,१४,१९,८४,६४००० । तीन सौ बहत्तर नील चौहत्तर खरब चौदह अरब उन्नीस करोड़ चौरासो लाख चौसठ हजार है। । इस प्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग का कथन समाप्त हुआ।
ज्ञातृकथा अंग का कथन णाणकहाछटुंगं पयाई पंचेव जत्थत्थि । छप्पण्णं च सहस्सा णाहकहाकहणसंजुत्तं ॥ ३९ ॥
ज्ञातकथाषष्टाङ्ग पदानि पंचैव यत्र सन्ति ।
षट्पंचाशच्च सहस्राणि नाथकथाकथनसंयुक्तं ॥ णाहो तिलोयसामी धम्मकहा तस्स तच्चसंकहणं । घाइकम्मखयादो केवलणाणेण रम्मस्स ॥ ४० ॥
नाथः त्रिलोकस्वामी धर्मकथा तस्य तत्त्वसंकथनं ।
घातिकर्मक्षयात् केवलज्ञानेन रम्यस्य ॥ तित्थयरस्स तिसंज्झे णाहस्स सुमज्झिमाय रत्तीए।
बारहसहासु मझे छग्घडियादिव्वझुणीकालो ॥४१॥ १. जीवादिवस्तु स्वभाव कथनं ।