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अंगपण्णत्ति--- तीर्थकरस्य त्रिसंध्यायां नाथस्य सुमध्यमायां रात्रौ ।
द्वादशसभासु मध्ये षड्घटिका दिव्यध्वनिकालः॥ होदि गणि चविकमहवपण्हादो अण्णदावि दिव्वझुणि । सो दहलक्खणधम्मं कहेदि खलु भवियवरजीवे ॥ ४२ ॥
भवति गणिचक्रिमघवप्रश्नतः अन्यदापि दिव्यध्वनिः ।
स दशलक्षणधर्म कथयति खल भव्यवरजीवे ॥ । णादारस्स य पण्हा गणहरदेवस्स णायमाणस्स । उत्तरवयणं तस्स वि जीवादी वत्थुकहणे सा ॥ ४३ ॥ ज्ञातुश्च प्रश्नाः गणधरदेवस्य जिज्ञासमानस्य ।
उत्तरवचनं तस्यापि जीवादिवस्तुकथनं सा॥ अहवा णादाराणं धम्माणुकहादिकहणमेवं सा । तित्थगणिचक्कणरवरसक्काईणं च णाहकहा ॥ ४४ ॥
अथवा ज्ञातॄणां धर्मानुकथादिकथनमेवं सा।
तीर्थगणिक्रिनरवरशक्रादीनां च नाथकथा॥ ज्ञातधर्मकथांगस्य पदानि ५५६००० श्लोक २८४०५१८४९५५४०००। वर्ण ९८९६५९१८५७२८००० ।
इदि णादाधम्मकहाणाम छट्ठमंगं गदं-इति ज्ञातृधर्मकथानाम षष्ठाङ्गगतं।
ज्ञातृ कथांग नामक छटा अंग है, इनका दूसरा नाम नाथ कथा भी है जिसमें पाँच लाख छप्पन हजार पद हैं। जो नाथ कथा ( महापुरुषों की कथा चरित्र ) के कथन से युक्त है । अर्थात् जिसमें महापुरुषों के चरित्र का वर्णन है। ___ तीन लोक के स्वामी ( तीर्थंकर ) को नाथ कहते हैं। उस नाथ (तीर्थंकर परम भट्टारक ) की धर्म कथा जीवादि वस्तु स्वभाव का कथन है। अथवा घातिया कर्म के क्षयानन्तर केवलज्ञान के साथ उत्पन्न रम्य तीर्थकर नाथ की पूर्वाह्न, अपराह्न, मध्याह्न और सुमध्य ( अर्ध ) रात्रि में छह-छह घटिका' काल पर्यन्त बारह सभा के मध्य दिव्यध्वनि निकलती है। अर्थात् तीन संध्या और अर्ध रात्रि में छह-छह घटिका दिव्यध्वनि का
१. २४ मिनट की एक घटिका होती है ।