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अंगपण्णत्ति -- २९९२६९५४१९८४००० ( उनत्तीस नील बानवे अरब उनहत्तर खरब चौवन करोड़ उन्नीस लाख चौरासी हजार है )। । इस प्रकार आचारांग का कथन समाप्त हुआ।
सूत्रकृतांग का कथन सूदयडं विदियंगं छत्तीससहस्सपयपमाणं खु । सूचयदि सुत्तत्थं संखेवा तस्स' करणं तं ॥ २० ॥
सूत्रकृत द्वितीयाङ्ग पत्रिंशत्सहस्रपदप्रमाणं खलु ।
सचयति सूत्राथं संक्षेपेण तस्य करणं तत॥ सूत्र कृतांग नामक द्वितीयांग छत्तीस हजार पद प्रमाण है । उस सूत्र का वा सूत्र के द्वारा कृत करण सूत्रकृत कहलाता है। अर्थात् यह द्वितीय सत्रकृतांग छत्तीस हजार पदों के द्वारा सूत्रार्थ का संक्षेप से वर्णन करता है॥२०॥ इसका संक्षेप से प्रतिपाद्य विषयणाणविणयादिविग्यातीदाझयणादिसव्वसक्किरिया । पण्णायणा (य) सुकथा कप्पं ववहारविसकिरिया ॥ २१॥
ज्ञानविनयादिविघ्नातीतस्वाध्यायादिसर्वसत्क्रिया।
प्रज्ञापना च सुकथा कल्प्यं व्यवहारवृषक्रिया ॥ छेदोवडावणं जइण समयं यं परूवदि । परस्स समयं जत्थ किरियाभेया अणेयसे ॥२२॥
छेदोपस्थापनं यतीनां समयं यत् प्ररूपयति ।
परस्य समयं यत्र क्रियाभेदान् अनेकशः॥ पय प्रमाणं ३६००० । श्लोक प्रमाणं १८३९१८४६३७४००० । अक्षर प्रमाणं ५८८५३९०८३९६८००० ।
इदि सूदयड विदियंगं गदं-इति सूत्रकृत द्वितीयाङ्ग गतं ।
मुनिगणों के ज्ञान, विनय आदि पाँच प्रकार का विनय, निर्विघ्न स्वाध्याय ( पठन पाठन ) आदि सर्व सक्रिया ( समीचीन क्रिया) प्रज्ञापना,
१. तस्य सूत्रस्य कृतं करणं । २. स्व समय जैन समयं ।