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आनन्दघन का रहस्यवाद
करता है। उनके अनुसार “रहस्यवाद तत्त्वतः 'संवेदन' की उस तीव्रता और गम्भीरता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है जो अपनी विश्वात्मक भावना के प्रति अनुभूत की जाती है।"१ रसेल की इस परिभाषा से फ्लेइडरर के मत का समर्थन होता है । फ्लेइडरर जहाँ ईश्वर के अव्यवहित सान्निध्य की चर्चा करते हैं, वहाँ रसेल महोदय ने उसी बात को मात्र 'आस्था' शब्द के द्वारा अभिव्यक्त कर दिया है ।२।। _ 'अनुभूति' के रूप में रहस्यवाद की व्याख्या करनेवाले विलियम जेम्स के अनुसार "रहस्यवाद उस मनोदशा को सूचित करता है जिसमें अनुभूति अव्यवहित बन जाती है। तज्जन्य आनन्दातिरेक को किसी अन्य के प्रति सम्प्रेषित नहीं किया जा सकता।" इसी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए अन्यत्र उन्होंने यह भी कहा है-“अपने हर्षातिरेक की असम्प्रेषणीयता ही रहस्यवादी समस्त दशाओं की एकमात्र व्याख्या ठहरायी जा सकती है।" इस प्रकार का हर्षातिरेक उस अनुभूति में प्रकट होता है जिसमें न केवल हम किसी निरपेक्ष सत्ता के साथ एकरूप हो जाते हैं, प्रत्युत वैसी एकरूपता का हमें आभास भी हो जाया करता है।३ इवेलिन अण्डरहिल का कथन है कि "रहस्यवाद भगवत् सत्य के साथ एकता स्थापित करने की कला है। रहस्यवादी वह व्यक्ति है जिसने न्यूनाधिक रूप में इस एकता को प्राप्त कर लिया है, अथवा जो उसकी प्राप्ति में विश्वास करता है और जिसने इस एकता सिद्धि को अपना चरम लक्ष्य बना लिया है।" अण्डरहिल के अनुसार इस परिभाषा में व्यक्ति और ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। साथ ही, दोनों में एकता स्थापना की सम्भावना भी की गई है, लामा एनागोरिक गोविन्द, विलियम जेम्स के कथन का समर्थन करता है। जहां जेम्स हर्षातिरेक की चर्चा करता है, वहां लामा ऐसे अनुभव को केवल प्रातिभ अनुभूति (इन्ट्युटिव एक्सपीरिएन्स) की 1. Mysticisnı is, in essence, little more than a certain
intensity and depth of feeling in regard to what is believed about the universe.
Mysticism and Logic, by Burtrand Russel, p. 3. 2. Exploring Mysticism, First Staal, p. 59. 3. The Varieties of Religious Experience, William
James, p. 379-429. 4. Practical Mysticism by Under Hill. p. 3.