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रहस्यवाद : एक परिचय
consciouseness' जैसे शब्द का प्रयोग भी करते हैं ।"" उन्होंने इसे 'मस्तिष्क-सम्बन्धी बौद्धिक चेतना' जैसा विचित्र नाम भी दे डाला है ।
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वास्तव में रहस्यवाद में मात्र चेतना ही नहीं होती, 'संवेदन' भी होता है । 'संवेदन' के रूप में रहस्यवाद को परिभाषित करने वाले पाश्चात्य विद्वान् फ्लेइडरर ( Pfleiderer) का कथन है कि 'रहस्यवाद ईश्वर के साथ अपनी एकता का स्पष्ट संवेदन है, जिस कारण इसे हम इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कह सकते कि अपने मूल रूप में यह केवल एक धार्मिक संवेदन मात्र है । परन्तु जिसके कारण यह धर्म के अन्तर्गत किसी विशिष्ट प्रवृत्ति का स्थान ग्रहण करता है, वह है ईश्वर में, ईश्वरत्व के अनुरूप अपने जीवन का पूर्ण तादात्म्य । इस प्रकार, ऐसे समस्त साधनों एवं मार्गों से पृथक् रहकर, जो हमारे लिए प्रायः माध्यमों का काम कर दिया करते हैं, यह एक पवित्र संवेदन के जीवन में प्रवेश भी कर जाना है तथा वहाँ पर उसके एकान्त अन्तर्वर्तितत्व में अपना कोई चिरस्थायी निवास स्थान बना लेना है ।"२
आइन्स्टीन जैसा वैज्ञानिक भी ऐसा संवेदन अनुभव करने पर लिखता है, 'सबसे सुन्दर वस्तु जिसे कि हम अनुभव कर सकते हैं, वह रहस्यवादी है और वह मूलतः भाव है ।" ३ प्रसिद्ध दार्शनिक बन्ड रसेल (Bertrand Russel ) भी रहस्यवाद को संवेदन के रूप में परिभाषित
1. The Teaching of the Mystics: W. T. Stace, p. 12. 2. Mysticism is the immediate feeling of the unity of the self with God; it is nothing therefore, but the fundamental feeling of religion, the religious life at its very heart and centre. But what makes the mystical special tendency inside religion is the endeavour to fix the immediateness of the life in God as such, abstracted from all intervening helps and channels whatever, and find a permanent abode in the abstract inwardness of a life of pious feeling. Quoted at p. 25 of 'Mysticism and Religion' by Dr. W. R. Inge.
3. Eastern Religion and Western Thought, by S. Radhakrishnan, p. 61.