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आनन्दघन का रहस्यवाद
१. चेतना के रूप में,
२. संवेदन (भावात्मक बोध) के रूप में,
३. अनुभूति के रूप में, ४. मनोवृत्ति के रूप में ।
रहस्यवाद को 'चेतना' के रूप में व्याख्यायित करनेवाले पाश्चात्य विद्वानों में प्रथम आर० एल० नेटलशिप ( Nettleship ) हैं । उनके अनुसार "सच्चा रहस्यवाद है इस बात का ज्ञान हो जाना कि जो कुछ हमारे अनुभव में आता है अर्थात् अपने वास्तविक रूप में, वह अपने से किसी अधिक वस्तु का प्रतीक मात्र है।" "
इसी तरह वाल्टर टी० स्टेस के मतानुसार “ रहस्यवाद में किसी 'अनिर्दिष्ट एकता' का बोध होता है ।" यहां एकता का संवेदन 'अन्तिम सत्' की ओर ले जाता है और इस तरह चेतना का सम्बन्ध उस अनिर्दिष्ट 'एक ही तत्त्व' से जुड़ता है । 'इनसाइक्लोपिडिया आफ रिलिजन' में रहस्यवाद की विशिष्टता इस रूप में बतायी गयी है कि "आत्मा अपनी आन्तरिक उड़ान में व्यक्त और दृश्य का सम्बन्ध अव्यक्त और अदृश्य सत्ता के साथ जोड़ना चाहती है, जो रहस्यवाद की सर्वसम्मत विशेषता है ।" " ऐसी चेतना को विलियम जेम्स बौद्धिक चेतना से पृथक् करते हुए कहते हैं- “यह रहस्यात्मक चेतना एक नितान्त नवीन प्रकार की चेतना है और हम इसे साधारण बौद्धिक चेतना से कुछ पृथक् ठहरा सकते हैं । मात्र इतना ही नहीं, जेम्स इसके लिए 'Sensory intellectual
1. True Mysticism is the consciousness that everything that we experience is an element and only an element in fact i. e., that in being what it is, it is symbolic of something more.".
Quoted in 'Mysticism and Religion by Dr. W. R. Inge, p. 25 (New York).
2. Walter T. Stace : 'The Teachings of the Mystics' (New York, 1960), p, 238.
3. "It is one of the axioms of Mysticism that there is a correspondence between the microcosm and macrocosm, the seen and the unseen worlds."-Encyclopaedia of Religion.