Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 20
________________ ६ आनन्द प्रवचन : भाग ८ मिलेगा। उस समय युधिष्ठिर की बारी थी। अर्जुन का बाण अन्दर महल में रखा हुआ था। वह थोड़ी देर तक तो दुविधा में रहा कि अगर बाण लेने अन्दर जाऊँ तो मर्यादाभंग हो जाएगी और अगर गोरक्षा न करूं तो धर्मभंग होगा।" आखिर उसने निर्णय कर लिया कि विवशता से हुए मर्यादाभंग का जो दण्ड होगा, वह मुझे स्वीकार है, लेकिन कुल-धर्मभंग न करूंगा।' फलतः अर्जुन चुपके से द्रौपदी के महल में घुस कर बाण ले आया और चोरों से गायों की रक्षा की। बाद में उसने युधिष्ठर के सामने मर्यादा भंग का निवेदन करके दण्ड लेना स्वीकार किया । युधिष्ठर नहीं चाहते थे कि अर्जुन इस आपवादिक स्थिति में दण्ड ले । परन्तु कुलसंस्कारों से ओतप्रोत अर्जुन तो बारह वर्ष का वनवास स्वीकार कर चुका था। इस तरह अर्जुन ने वनवास स्वीकार किया, लेकिन कुल धर्मभंग न होने दिया। . यही कारण है कि गौतम ऋषि ने श्रमण परम्परा के अनुसार कुलों का जीवन निर्माण करने की दृष्टि से गौतमकुलक ग्रन्थ का निर्माण किया है। कुलों का जीवन निर्माण करने के लिए भी धर्मानुलक्षी कुछ नीति-सूत्रों की आवश्यकता रहती है, उसके बिना भी कुलों का व्यवस्थित ढंग से विचार और आचार की दृष्टि से निर्माण होना कठिन होता है । महाकुलों का जीवन निर्माण कैसे होता है, इस सम्बन्ध में मैं आपको महाभारत युग का एक उदाहरण देकर समझाना चाहता हूँ विदुर निःस्पृह नीतिज्ञ थे। एक बार विदुर ने युधिष्ठर से कहा-छल (असत्य) और बल से धन प्राप्त कर लेना सम्भव है, लेकिन महाकुलों के आचार से युक्त जीवन धन से प्राप्त नहीं किया जा सकता।" इस पर धृतराष्ट्र ने कहा"विदुर ! मैंने सुना है कि जो धर्म और अर्थ में बढ़े-चढ़े हैं, बहुत पढ़े-लिखे हैं, वे भी महाकुल की प्रशंसा करते हैं। मैं जानना चाहता हूँ कि महाकुलों का जीवननिर्माण कैसे होता है ?" विदुर ने कहा-'तप, दया, ब्रह्मज्ञान, यज्ञ, सदा अन्नदान, शुद्धविवाह, और सम्यक् आचार-इन सात गुणों से साधारण परिवार भी महाकुल बन जाते हैं । जो किसी भी प्रकार सदाचार का अतिक्रमण नहीं करते, जो विवाह सम्बन्ध ठीक प्रकार से करते हैं, जो जीवन में असत्य का मार्ग छोड़कर धर्म का आचरण करते हैं, जो अच्छे परोपकारी कार्य करके कुल के लिए विशिष्ट कीर्ति उपार्जन करने का प्रयत्न करते हैं, उनके कुल का निर्माण होने से वे महाकुल कहलाते हैं । जो आचार-विचार से हीन हैं, उन कुलों में कितना भी धन हो, वे प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर सकते; इसके विपरीत अल्पधन होने पर भी सदाचार ठीक होने से वे कुल यश और प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं और उनकी गणना महाकुलों में होती है।" __वास्तव में कुलों का निर्माण केवल छल-बल से धन प्राप्त कर लेने, प्रचुर साधन जुटा लेने, कार, कोठी और कञ्चन प्राप्त कर लेने से नहीं होता, उसके लिए धर्म-नीति-युक्त शुद्ध आचार-विचार और व्यवहार का होना अत्यावश्यक है । गौतमकुलक कुलनिर्माण की बात कहता है । इसमें बताया गया है कि कुल निर्माण करने के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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