Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
निर. १७:
जंबू. ७३ : अपत्थयण [अपथ्यदन] नहीं पयतो खेवो खाहार
नाया. १५७;
अपत्थिय [ अप्रार्थित ] नरछेसुं
नाया. ६५,८७,९१, १२५, १६०, १७६, १७७; अंत. १३; अपत्थियपत्थग [ अप्रार्थितप्रार्थक] भोतनी
અભિલાષા કરતો
निर. १७:
जंबू. ९०: अपत्थियपत्थय [अप्रार्थितप्रार्थक] '७५२'
जंबू. ६७,७३,८०,८४,९०,
निर. १५:
अपत्येमाण [ अप्रार्थयत् ] नभ्छतो
उत्त. ११६०;
ठा. ३४७; अपद [अपद] भुक्तात्मा, सिद्ध, भांजो
जीवा. १३६ : अपदुस्समाण [अप्रद्विष्यत् ] द्वेष न उरतो
अंत. १३;
अपदेस [अप्रदेश] निन्द्य अहेश
भग. २८६,७८८ :
अपदेसट्टया [अप्रदेशार्थ] जयहेश भाटे
भग. ८८८, ८९१;
अपद्दवंत [अप्रद्रवत् ] भराग पामतो
पत्र. २९६;
भग. ११२:
अपमज्जण [अप्रमार्जन] पुंठधुं नहीं ते
ओह. ४७६ : अपमजिय [अप्रमृज्य ] मेहरएगाहिथी पुंभेस डे પ્રમાર્જેલ નહીં તે
आया. ३६२;
अपमज्जियचारि [ अप्रमार्जितचारिन्] प्रभार्थना કર્યા વિનાના સ્થામાં બેસતો કે ફરતો સાધુ.
सम. ५०:
अपमत्त [ अप्रमत्त] सप्रमाधी, सातथी यौध ગુણઠાણા પર્યંતના જીવ
भग. ४६५;
दसा. १५;
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पन्न. ४५०, ५१९;
नंदी. ८१ :
अपमत्तसंजत [अप्रमत्तसंयत ] सातमे गुहाए વર્તતો સાધુ, અપ્રમાદી
पन्न. ३४४ :
अपमत्तसंजय [ अप्रमत्तसंयत ] दुखो '५२'
सम. २४६;
पन्न. ३४४, ४४८,५३०:
अपमाण [ अप्रमाण ] प्रभाएाथी भिन्न
पन्न. ५७४;
अपमाणभोइ [ अप्रमाणभोजिन् ] प्रभागथी वधु આહાર લેતો–એક દોષ
पण्हा. ३८;
अपमाद [ अप्रमाद] प्रभार रहित
ठा. ४५६;
अपमायपडिलेहा [अप्रमादप्रतिलेखा] प्रभाह વર્જીને પડિલેહણ કરવું તે
ठा. ५५३:
अपमायभावना [अप्रमादभावना] प्रभानुं सेवन ન કરવું તે
आया. ५३५;
अपय [अपद] खो 'अपद'
आया. १८४;
अनुओ. ७१,७४,३२९; अपयट्ठिय [अपदस्थित] यह रहित खेवो
महानि. १३८४;
अपर [अपर] अन्य, हुं
नाया. ९१;
૧૮૧
वीर. १३:
उत्त. ५३८;
सूय. ३७९;
दसा. ९२;
अपरकम्म [अपराक्रम] सामर्थ्यहीन
भग. ४३,३७५, ६३६;
नाया. ३७,९३, १४७, १५९, १७६, २११, २१८:
उबा. २७; विवा. २२; अपरक्कम [ अपराक्रम] सामर्थ्यहीन
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भत्त. ११;
अपरच्छ [अपराक्ष] असमक्ष, परोक्ष
पण्हा. १४;
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