Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 406
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૪૦૫ કરવી તે इट्ठतराय [इष्टतरक वधारे प्रिय पन्न. २०३,२०५.२१७,२२६,३४४,४५८. राय. १५; ५१९; जीवा. १६४,१८५,२९१ थी २९३.३०२; जंबू. ३७,६०,६१,६८,७६ थी ७८,९०, इट्टतरिय [इष्टतरक] वधारे प्रिय १२१,१२२,१४३,२२७,२२९,२४०,२४४ः पन्न. ४६४ थी ४६८; जंबू. ३५; निर. १५,१८: पुष्फि . ५,८: इद्वत्त [इष्टत्व प्रयत्व, गमवा५j पुष्फ. ३; बण्हि . ३: भग. २८०: पन्न. ५९१; दसा. ८७,१०१, आव. २१: इट्ठपुर [इष्टपुरष्टपुर, प्रियनगर दस. ४३७,४४०,४४२,४५४,५०१: नाया. १५७; उत्त. ९३,२०५,३९६,४१७,७०१,८०९, ८१७,१०७६,१४६१,१७२७; इट्ठस्सरता [इष्टस्वरतामधुर २५२५j इड्डिगारव [ऋद्धिगौरव] संपत्ति माहिनी प्राप्तिमा पन्न. ५३९; અભિમાન કરવું અને અપ્રાપ્તિમાં લાલસા इडर (दे.Just अनुओ. २५३; इडरग दि.] सोSaisवानु भोपात्र सम. ३; आउ. ११; राय. ७४: | इडिपत्त ऋद्धिप्राप्तध्याहिनी प्राप्ति इडरय (दे. ठुमो ७५२' सम. २४६; राय.७४ः भग. ३८६,४२५,६१२; इड्डि /ऋद्धि वैभव, समृद्धि | इड्डिपत्तारिय [ऋद्धिप्राप्तार्य) द्धिने प्राप्त आर्य आया. ५२०; सूय. ६७० જેમકે અરિહંત આદિ ठा. ८९.१४१,१९० थी १९२,२०९,२१२, पन्न. १६६; २२८,३४५,५२२,७०२: इडिमंत [ऋद्धिमत्] *द्धिवानो सम. ९७,२२२ थी २२७: ठा. ४७८,५३४: जंबू. ३३५; भग. २९,१५१,१५३.१६०.१६१.१६३. || उत्त. १५५,७२२: १७१,१७२.१७६,१७७.१८५,१८६.१८९, || इडिसिय [दे. भांगनी मेsala १९१,३६६,३७५,४६४,४६५,४८२,५०६. | जंबू. १२१; ६२६,६२८,६२९,६५२.६५४,६७४ थी इडीगारव [ऋद्धि गौरव] मो 'इड्डिगारव' ६७६,७१५,७१६,७२७.८०४,९७० ठा. २२९ नाया. १८,२२,२५,३२,३३,५०.७६,८७, | इण [एतत् ॥ ९३,१०९,११०.१४२.१४८.१५२.१५३. भग. २४; नाया.६७; १६२.१६९.१७०.१७६.२०९.२२०: जीवा. ८०; भत्त.७; उवा. २५.२७: अंत. १३,२०: : तंदु. २०: गणि. १: पण्हा.११,१६,३७ः इणं [एतत् ॥ विवा. १५.२१,२२,२८,३३.३७; अंत. ५: पण्हा .३५: उव. २२.३१.३४,४४.४८ थी ५१: उव. ३४: पन्नं.३ राय.११ थी १४,१६,१७.४२,४४.७४. || सूर. १२६: चंद. १३० ८२.८३: जंबू. ३२: वव. १८७ः जीवा. १७९,१८०.१८५: || इणमेव [इदमेव ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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