Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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आगमसद्दकोसो
સંબંધિએક અભિગ્રહવિશેષ ધારણ કરનાર સાધુ नाया. १६४:
भग. ९६५; उव. १९; | उवप्पलोभेत्ता [उपप्रलोभ्य] सोमयी १२४२पाने उवनीयअवनीयवयण [उपनीतापनीतवचन)|| नाया. १६४: પ્રશંસા અને નિંદા વચન-જેમાં ગુણની સ્તુતિ || | उवबूह [उपबृंहण] समानधर्भान। स भीनी અને દોષની નિંદા હોય
પ્રશંસા કરી તેમના મનને ઉત્સાહિત કરવારૂપआया. ४६६: पन्न. ३९७: સમક્તિનોઆચાર उवनीयचरय [उपनीतचरक] गौरी संधि : पन्न. १८९: અભિગ્રહ વિશેષ
उवबूहण [उपबृंहण]gो ७५२', २१ए, निमा, भग. ९६५; उव. १९;
વૃદ્ધિ, પોષણ उवनीयतर [उपनीततर न भमतिशयमय पण्हा. ३५: થયેલ
उवबूहणिय [उपबृंहणिक वृद्धि-5२४ सूय. १२७;
निसी. ५९० उवनीयतरग (उपनीततरक)मतिनी | उवहित [उपबृंहत] प्रशंसा तो सूय. ६४५,६६५;
गच्छा. ३४ उवनीयवयण [उपनीतवचन] प्रशंस३५ वयन उवभुंज [उप + भु]uj आया. ४६६: पत्र. ३९७:
नाया. ७५: उत्त. ७४१: उवने [उप + नी] 458,घोj.
उवभुत्त [उपभुक्तभोगवेल पिंड. ४२३; .
नाया. ७५; भत्त. ३९: उवनेत्ता [उपनीय १४४ने, सोपान उवभोग [उपभोग] ७५मोगवस्तु, लेनोवारंवार सूय. ७३८; नाया. ४९;
ઉપભોગ થઇ શકે તેવા સ્ત્રી-આભુષણ આદિ विवा. २२;
भग. ३९३
उवा. ८: उवनेय [उपनेयमो ७५२'
पण्हा. १०ः जंबू. ५२; राय. ६१;
दस. ४४४: उवन्नत्य [उपन्यस्त] ७५न्यास रीस्थापेट.. उत्त. १२७८,१२९१,१३०४.१३१७, दस. ११४;
१३३०,१३४३.१३७२: उवन्नासोवणय उपन्यासोपनया वाहीने तवा माटे || उवभोगतराय [उपभोगान्तराय] अंतरायभनी પ્રત્યત્તર આપવો
પ્રકૃતિ જેના ઉદયથી ઉપભોગમાં અંતરાય આવે ठा.३६०
सम. ४२.१००:. भग. ४२७: उवप्पयाण [उपप्रदान] २०४नीतिनो मे -
पन्न. ५३९, अनुओ. १६१: જેમાં દુશ્મનને લલચાવીને વશ કરાય છે,
| उवभोगट्ठा [उपभोगार्था)वस्त्र महिना भोगने અભિમત અર્થનું દાન
दस. ४४४: नाया. १०.८६.१४८: विवा. २२.२४,२९: राय. ५१:
|| उवभोगत्ता [उपभोगत्व] ७५त्मोपj निर. ९:
ठा. ६५४,९८६; सम. १६: उवप्पलोभ /उप + अ + लोभया सोमावाने वश | उवभोगपरिभोग [उपभोगपरिभोग] वारंवार 3 કરવું
| એકવારભોગવાય તે
માટે
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