Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तकसहिओ)
૪૯૫
भग. ९८; नाया. ३९:
सम. १७४ उवा. १४; अंत. ५:
भग. ९८,११३,११६,३७५,४५९,४६२, विवा. २६;
४६४,४६५,४८०,६२६,६४५,६४८,६५९; उवसंपत्तिाणं [उपसम्पद्य] शुमो 6५२ नाया. ३३,४०,८७,११०,१२४,१२५, ठा. ६९९ः भग. ५०८:
१३८,१३९,१४७: उव. १९; राय. ५४;
उवा. २७.३०,३३,३६,४७; जीवा. २८८; पन्न. ४४१:
अंत. १३,२७; पण्हा. १५,३६; सूर. १९२; चंद. १९६ः
उव. ४९.५०,५१; जंबू. २६८; बुह. ३,
राय. ५६.८१,८४; पुप्फ. ३; पुष्फि. १२५;
जंबू. ४३.४४,७८,८४,८८,९० वव. २३: दस. ४०
गणि. ३४: वीर. ६; उत्त. ११४६;
वव. २४९,२५०; उवसंपजियव्य [उपसम्पत्तव्य] ५६वी आपकी, दसा. ४८ थी ५२,१०३ थी ११२; ઉપસંપદા કરવી
उत्त. ७६,१०४०,१२३०; नंदी. १४५; वव. १०५;
उवसग्गपत्त [उपसर्गप्राप्त]6पद्रव पामेल, उपसर्ग उवसंपण्ण [उपसम्पन्न] Gधत थयेटर
પ્રાપ્ત सूय. ७९८; महाप.७२,७५,१२०; ||
बुह. २०९: वव. ४८; उवसंपदा उपसम्पदा] शान संपत्ति माटे || उवसग्गपरिण्णा [उपसर्गपरिज्ञा] 'सूया' सूत्रनु
આચાર્યાદિકની નિશ્રા સ્વીકારવી તે, ત્રીજું અધ્યયન સામાચારીનાદશમાંનો એક ભેદ
सम. ३८.५३; उत्त. १०१०,१०१३: ।
उवसग्गे [उपसर्गयितुम्] 6५स[ ४२वाने भाटे उवसंपया [उपसम्पदा मो ७५२'
नाया. १२५: ठा. १८७,९६०; भग. ९६१: उवसज्ज [उप + सृज्]माश्रय ४२० दस. ५०६; अनुओ. १४३.१४४ः ।। आया. ४९७; उवसंपयाविहार [उपसम्पत्विहार] निश्रात्, | || उवसत्त [उपशक्त] २ सहितवाणो વિચરણ
उत्त. १२७५,१२८८,१३०१.१३१४, जीय. ८;
१३२७.१३४०; उवसंहार [उपसंहार] समेटj, रोऽj
उवसम [उपशम] शांति, क्षमा, पक्षन। ५६२म। सम. १०५:
દિવસનું નામ, અહોરાત્રના એક મુહુર્તનું નામ, उवसग्ग [उपसर्ग] ७५सर्ग, प्र, प्रति, निरवगैरे - ઉદયમાં આવેલ કર્મ પ્રકૃત્તિ દબાવવી, ઈન્દ્રિય જે ધાતુની આદિમાં લાગીને કોઇ અન્ય અર્થ
નિગ્રહ
आया. १५०.१९४.२०१.२०७: પ્રતિપાદિત કરે તે, ઉપદ્રવ, કષ્ટ
सूय. ६४७.६६५: ठा. १०२: आया. २३५.२३९,२६१,२९४.२९५,३०६,
सम. ९८.२२६; उव. ४१ थी ४३: ४४४.४९७,५३५:
सूर. ५९.६३, चंद. ६३,६७ सूय. १२५,२२४,२४६.४६४,६३२.६७०
जंबू. २८९.२९७: महाप. १११; ठा. ३९२,४४३,४७५,५१९,८७५,१००२;
भत्त. ८८:
बुह. ३४; For Private & Personal Use Only
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