Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 503
________________ ૫૦૨ आगमसद्दकोसो पुष्फि. ८: तंदु. १२१: भग. ५६४: गच्छा. ११३: आव. १७: उव्वट्टित्ता [उद्धत्यं] 'तन' रीने दस. २१,२८८,४२६; ठा. १४३: भग. ४९८: उब्वट्टणया [उद्धर्तना] Gटुं भईन २ ते, हेव - || नाया. ५२; अंत. २०: નારકીભવપુરો કરવો विवा. ९: जीवा. १४: पन्न. ३२६; पन्न. ३४५: निर. १९; उव्वट्टणा [उद्धर्तना]मो 6५२' उव्वट्टिय [उद्धर्तित न भवपुरो री बाहर ठा. ८५; सम. २५२ નીકળેલ, ઉલટુમર્દન કરેલ भग. ४९८,५५८,७६१,८०४,८०७. पण्हा. ८,१६: जीवा. १०५,१०७: १०१६,१०४५,१०४६,१०६४,१०६७: पिंड. ४५४.४५६: उवा.८: विवा. ९: उव्वटेंत [उद्वर्तमान उद्वर्तन ते जीवा. ४०,१०७,११५.१३१,१८५: निसी. ५,१४२,१४८.१७०,१७८,२५३. पन्न. ३२७,३२९,३३१,३३३,३४५,३४६, || २५९.२६५,२८७,२९५,३९८,४१९,४२५. ३४७,३४८: ४३१,४५३,४६१,४८६,४९२,४९८. उव्वट्टणादंडय [उद्वर्तनादण्डक] उद्वर्तना विषय ५२०,५२८.६६८.६७४,६८०,७०२.७१०, ६ १००६,१०१२,१०१८,१०४०,१०४९: सम. २५२; उव्वट्टेता [उद्वत्य वर्तनाऽरीने उव्वट्टणावय [उद्धर्तनाकारक] पीही शवनार ठा. ८७२: नाया. १६४: निसी. ६०५: उव्वत्त [उद् + वृत्] अवस्थित हो, वैयाक्थ्य उव्वट्टणासय [उद्वर्तनाशत उद्धर्तना नाम शत: | કરનાર એક સાધુ વર્ગ જે પડખું ફેરવવાદિ भग. १०१७ સેવા કરે उव्वट्टमाण [उद्वर्तमान] वर्तन २ ते नाया. ६०,६२, भग. ८०: उव्वत्तण [उद्धर्तन] ५७५ महसवात उव्वट्टा [उद्धर्तक] वर्तन २नार ओह. ३०,१३८: निसी. ६०५: | उव्वत्तमाण [उद्धर्तयात्] ५४ानुं परिवर्तन रेट उव्वट्टाव [उद् + वर्तय] हुमो उव्वट्ट आया. ३७० निसी. ९२६: उव्वत्तिजमाण [उद्वर्त्यमान] ५४ानुं परिवर्तन उबट्टावेत [उद्धर्तयत्यालतो, भरतो, शरीरको भेल કરાયેલ દૂર કરતો नाया. ६० निसी. १२६,९.३२.९५४.९६३.११२६. || उव्वरिय [उर्वरित] गौयरीनो होष ११३२.११३८.११६०,११६८,११७९.११८५. पिंड. २२७ ११९१.१२१३.१२२२: उव्वल [उद् + वल्] पसेपन उवट्टावेत्ता [उद्धर्त्य) द्वर्तन' शने आया. ३६०.४२९: विवा. ३३: . | उव्वलंत उद्धलत्] पसेपन रेस उव्वट्टावेयव्य [उद्वर्तयितव्यान२६नोमवपुरो || पण्हा. १६: કરી નીકળવાને || उव्वलण [उद्धलन] ७५ोपन २ ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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