Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 497
________________ ૪૯૬ आगमसद्दकोसो दस. ३८९: उत्त. १२५७: || उवसामणोवक्कम [उपशमनोपक्रम] भने ७५नंदी. ६१ अनुओ. १६१; શમાવવાનો આરંભ उवसम [उप + शम्] शांत थj, भ प्रतिने | टा. ३१५: ઉપશમાવવી उवसामय [उपशामक) हुमो ‘उवसामग' सम. ११० राय. ५: भग. ९४०; पन. ५४४: भत्त. ८३; बुह. ३४; | उवसामित्तए [उपशामयितुम्] 6५शमावाने माटे उवसमन [उपशमन] ७५शमनवृत्ति नाया. १४७; विवा. ९: ठा.३१५ उवसामित्ता [उपशाम्य] ७५शमावीने उवसमनिप्फण्ण [उपशमनिष्पन्न] ४ प्रत्तिनो | राय. १०; ઉપશમ કરવામાં આવ્યો છે તે | उवसुद्ध [उपशुद्ध] निहोष अनुओ. १६१.१६३; सूय. ३८०; उवसमय [उपशमक] ७५शम भाव मुनि, उवसोभमाण [उपशोभमान] शोभायमान ઉપશમ શ્રેણિએ ચડેલ पुष्फि.५; सम. ३१; | उवसोभित [उपशोभित शमतुं उवसमावेयव्य [उपशमयितव्य] ७५मावते भग. ४६५,५१८; नाया. २२; दसा. ५३: जीवा. १६३,१६७,१७१; उवसमित्ता [उपशम्य] 3५२मावीने उवसोभिय [उपशोभित] शोमतुं राय. १०ः उव. ३१; उवसमिय [औपशमिक] भ प्रतिनो ७५शम, | राय. १५,१६,२७,३०,३१.३६: પશમિક ભાવ जीवा. १६८,१७३,१७४; अनुओ. ९९,१४५,१६१,१६३; जंबू. ६०,१२,१३,२०,३२,४०,४७,४८, उवसमिय [उपशमित] 6५शम - प्रात ५३,१२१,१२२,१२८,१३४,१३७,२२८,३४४; ठा. ५८८; भग. ९५३: उवसोभेमाण [उपशोभमान] शोभायमान उवसमियव्व [उपशमितव्य] ७५शमावते भग. २५.११२,११४.३४५,६४०,६५५ बुह. ३४ नाया. ४०,१४२,१४५,१५७; उवसाम [उप + शमय] शांत अनुत्त. १०,११,१३: टा. २६९; भग. ४३; राय. १५,२८,२९,३४,३६,७८; जीवा. १६३,१६७.१६८,१७५.१८५; उवसामग [उपशामक] भोडनीय प्रति 64 जंब. ३२.२२८.३६४ શમાવી - ૧૧ -મે ગુણઠાણે રહેલ | उवसोहिय [उपशोभित] शोभावाj भग. ९३५.९५३; नाया. २२,२३; जीवा. १६४; उवसामण [उपशमन] हुमा उवसमन' जंबू. १४३.२४४: उत्त. ३२७,५९३: टा. ३१५: उवसोहिय [उपशोधित निभा रे उवसामणता [उपशमनता] ७५शमवृत्ति नाया. ११२,१२५: ठा. ७८६: | उपसोहेमाण [उपशोभमान] शोमतो उवसामणया [उपशमनता] ओ '७५२' अंत. ५०.५९: भग. १७० ।। उवस्सय [उपाश्रय] साधु - साध्वी या २३छ ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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