Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 493
________________ ૪૯૨ आगमसद्दकोसो पत्र. २६०.४२६,५८७,६०४: | उववातियत्त [औपपातिकता औपातिsuj उववन्नपुव्व [उपपन्नपूर्व] पूर्व ४न्भेद ठा. ७०० भग. २९१.२९४,२९९,५५१,८०७.१०४५, उववाय [उपपाद] उपसंपाइन १०५७; उत्त. १४४०,१४४१: जीवा. ९१.३०५,३२२; जंबू. ३६३; उववाय [उप + पादय/संपाउन २ उववनय [उपपन्नक] उत्पन थनार दस. ३८३; उत्त. ४३: भग. १७२,१७६: उववाय [उपपात] एमओ उववात उववन्ना [उपपन्नक उत्पन थनार आया. १२२,१९०,२२०,५३५: भग. १०४२ ठा. २८, ८५,१७४.१८१,५८६.७०२,९७५: उववाइय [औपपातिक] 'Gals' नाम से सम. २२०,२५२,३५८; (Grslies) मसूत्र, पसुंरुपांगसूत्र, आई भग. ३२,१०४,१३९,१६३,१६६,१९४. ભવમાંથી બીજા ભવમાં જનાર, દેવશય્યા, કુંભી १९५, १९९,२००,४२१,४९१,४९८, भग. ७०९ थी ७११,७१४,१०३३,१०३४; | ५५५,५६३,५९७,५९८,६२६,६८७, पण्हा. २०,२४ पन्न. ३३४; ७६१,७६८,७८०,८०६,८३५,८४६,८५६,८५७, दस. ३२; उत्त. १४१: ८६०,८८१,९९८,१००४ थी १००६, उववाइयसुय [औपपातिकश्रुत] '644s' नाम १०३३ थी १०३५,१०४५,१०५७,१०५८, એક સૂત્ર કે શ્રુત १०६४,१०६५,१०६७ थी १०६९,१०७२: जो.नंदी. १; नाया. ११२,१२४,२२६,२२७; उववाएयव्य [उपपादयितव्य] उत्पन्नथवाने योग्य अनुत्त. २: उव. ४४,४८,४९,५१; राय. ८४; भग. ५५५: पन्न. ३२४ जीवा. १२,१४,१६,१८,३३,३४,३६,४०. उववात [उपपात] उत्पन्न थj ते 6त्पत्ति, हेव ४३.४६.४९,५०,११३,१२३; નારકીનો જન્મ થવોતે, દેવની એકસભા, ઉપાય, पन्न. १९२ थी १९६,२०१ थी २०३,२२१. કારણ, સેવા, ભકિત ३२७.३२८,३३१ थी ३३३,३३६ थी ३३८, सूय. ५५४: ठा. १७४.१८१: । ३४०.३४१,३४५,३४७,३४८,५०७; जीवा. ४९.१००.२८८,२९१.२९४.३००, ॥ जंबू. ४४,१४४,१६२,२६८: ३३०; कप्प. २,३: पुष्फि. १०ः पन्न. ५०६: सूर. ११६: आउ.९: महाप. ६०; उववातगति [उपपातगति] 94 पुगलने में || तंदु. ११: देविं. १६७,१६८: સ્થાનેથી બીજે સ્થાને જવું તે वव. ११२: दसा. ११२: पन्न. ४४१: उत्त. २: उववातसभा [उपपातसभा] विने उत्पन्न वानी | उववायगइ [उपपातगति] सो ‘उववातगइ' સભા. भग. ४११: ठा. ५२५: राय.४१: उववायगति [उपपातगति छुओ 6५२' जीवा. १७९: पुष्फि. १३१: पन्न. ४४१ उववातिय [औपपातिक] हुमो ‘उववाइअ' | उववायदंडय [उपपातदण्डक] '७५५ात' नाम ५६ ठा. ७०० વિશેષ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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