Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
४४३
उड्डोववन्नग [ऊवोपपन्नग] 6desi 64 || पुष्फि. ८: तंदु. ९६.१०२: થનારદેવ-દેવી
गणि. ३७;
दसा. ४९; भग. ४२१: सूर. १९२;
उत्त. ५८,४९८,६४५,६६१,६७४,१४८४; चंद. १९६; जंबू. २६७;
उण्हपरियाव [उष्णपरिताप मतिरामीनोपरिषद उण [पुनर] इशथी, इरी
उत्त. ५७; ठा. ३००
उण्हय [उष्णक शुभो ‘उण्ह' उणग [ऊनक न्यून, मोर्छ
उत्त. १५०३; वव. २०२:
उण्हवण [उष्णापन] अनुते उणादि [उणादि] उण वगैरे प्रत्यय
पिंड. २४० पण्हा. ३६ः
उण्हवाय [उष्णपात गरम पवन उण्ण [ऊर्ण] 61
नाया. ३७ निसी. १८६,३३९;
उण्हसह (उष्णसहा गरमी सहन सीते उण्णकप्पास [ऊर्णकाप्पास) घेाना वाण
भग. ६५८; निसी. १८६;
उण्हाभितत्त [उष्णाभितप्त सभीथीमत्यंतचीत उण्णमणी /उन्नमनी में विद्या विशेष
-:पीथये अ.नंदी. ३:
उत्त. ५८; उण्णय [उन्नत] नत, यु,मामा, नीत, || उपहाभिहय [उष्णाभिहत] सूर्यनी गरभीथी पीडित ચડતું, ગુણવાન, અભિમાનરૂપમોહનીયકર્મ
भग. ६७२ -संह भाटे हुमो उन्नय;
उण्होदय [उष्णोदक] गरम पाए उण्णा [ऊर्णा न
दसा. ५३; भग. ४०८,६४९:
उत्त [उक्त] उण्णिय [औणिक] 6ननु, Gनना पनेस
जीय. ७५; રજોહરણાદિ
उत्त [उत्त] पावेत सूय ६४:
पिंड. १७२: ठा. ४८४: बुह. ८०; अनुओ. ४१:
उत्तण [उत्तृण ठेभा पास गेहुंछते उण्ह [उष्ण] २म, अनु, एत
पण्हा. ८.११ आया. १८४: सूय. ४४,२८६:
उत्तत्त [उत्तप्त मतितपेढुं ठा. १६२,
पन्न. २१४: भग. ११३ थी ११५,२१३.३३३,३६०,
उत्तत्त्थ [उत् + त्रस्त त्रासयुति ४६२,४६४.४६५.५२०.६२५.६२६.६५१.
पण्हा. १६: ६५८,६७२;
उत्तप्प [उत्तप्त हेहीप्यमान, गर्वित नाया. ११.१३.३७,४०.६७,६९,७४.२१५: राय. ६२,६३; अंत. १३:
अनुत्त. १० उत्तम [उत्तमउत्तम, सर्वोत्ष्ट पण्हा . ८.१६: उव.४९:
आया. २५९.२९९,५२४: राय. ६२.८१: जीवा. १०५: सूय. १३४,३७४,५७१; ठा. ८९: पन्न.४६२,४६६.५५३.
सम. १,२१६,२२३ थी २२७,२३२:
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