Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
૪૫૧
३६८,३६९.३७६, ३९२,३९८,४१०, नाया. १५
पण्हा. ३९ः ४३३,४३८,४३९,४४५,४४७,४८१,४८२, | उत्थय [अवस्तृत] मो 6५२ ४८६,४९२,४९४,४९७ थी ४९९,५०१; भग. ३७२,३७३; नाया. १५: सम. ५१:
दसा. ९८.९९,१०१, निसी. ५४३,७९६,८८९,११०५,१२७५, | | उत्थरंत [अवस्तृण्वत्र छाहन ४२तो, isतो १३१८:
पण्हा. १५: बुह. १३९ थी १४२:
उत्थल [उत्स्थल धूगनाटे७२। दसा. ३; __ आव. १६:
भग. ३५९; दस. १३४,३६१,३६५ः
उत्थल्ल [उत् + स्तुमाछाहन ४२j उत्तिंग उत्तिङ्ग] वनस्पति विशेष
महानि. ६६७;, आया. ४५३:
उत्थल्लण [दै.माछाहनत उत्तिटुंत [उत्तिष्ठत्]हित येत
पण्हा. १६; उत्त. ३५१;
उद [उद] उत्तिण्ण [उत्तृण तृए। शून्य
आया. २७५; जीवा. १६५; भत्त. १३० अनुओ. ३०५;
उदअ/उदक]पाए, पानी वनस्पति, उत्तिण्ण उत्तीर्ण] २ तरे
જાતનું વૃક્ષ, વિશેષ નામ नाया. १७८; जंबू. ७६;
ओह. ८१,२२०; उत्तिम [उत्तम हुमो ‘उत्तम'
उदइ [उदायिन्] यामना२ भत्त. १५२;
भग. ४९८,१०४५,१०६४,१०६५; उत्तिमंग [उत्तमाङ्ग]ो 'उत्तमाङ्ग'
उदइय [औदयिक] भनो ध्य, भन यथी सूय. ३१४ पण्हा. १९:
નિષ્પન્ન એક ભાવ उव. १०, जीवा. १८५;
अनुओ. ९९,१४५,१६१,१६३; जंबू. ३४:
उदउल्ल [उदका पाएीथीनीय उत्तिमट्ट [उत्तमा) हुमो ‘उत्तमट्ठ'
निसी. २३३; दस. २४९,३५७; आउ. ११; संथा. ११०;
अनुओ. २६५; गणि. ५८,६२:
उदउल्लकाय [उदकाकाय] पीथी लीन थये। उत्तिमढकाल [उत्तमार्थकाला मोक्ष
શરીર महाप, २८;
दस. ४२; उत्तिमट्ठपत्त [उत्तमार्थप्राप्त भोक्षने प्रात येत
उदउल्लवत्थ [उदकावस्त्र] पाथी लीना थयेट भग. ३१२
વસ્ત્ર उत्तुपिय [दे. स्निग्ध, यी
दस. ४२; पण्हा. ६१: उत्तुयंत [उत्तुदत्त] पी२वीते
उदओभास [उदावभास/ एनोमामास
ठा. ३२५; विवा. ६१: उत्तेडा [दे.] पास ७५२ मे ओस बिंदु
| उदओल्ल [उदका हुमो ‘उदउल्ल' पिंड. २६:
__ दस. ४२,१०८ उत्थइय [अवस्तृत माछाहन रेस. दसि || उदंक [उदङ्क] पाएनु विशेषपात्र
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