Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 461
________________ ४६० आगमसद्दकोसो १००२,१०४६; १०४६, १०४८,१०५३.१०५४,१०५६ नाया. ११२ पण्हा. ३२.४४; थी १०६०,१०६५ थी १०६७,१०६९ थी जंबू. २७७ः गणि. ४० १०७८: निसी. ६५४; बुह. ९४: पन्न. ४६९; जीय. २२,२३,४०; उत्त. १२४२; उद्देसिय [औद्देशिक] साधुने ७देशीने बनावेत जो.नंदी. १; अनुओ. २ थी ६,३३८: | આહારાદિ, ગૌચરીનો એક દોષ उद्देसग [उद्देशक अध्ययन, शतs, ५६, स्थान आया. ३४७.४९९; આદિનો એક પેટાવિભાગ सूय. ४५०,६४७,६६५; सम. २२१; ठा. ८७५; सम. ५१; भग. ४४४,४७७,८१४ थी ८२१,८२३ थी| भग. ४६४: नाया.३३: ८२८,८३० थी ८३४; अंत. १३; उव. ५० अंत. ६१; अनुत्त. १३; निसी. ३७५: बुह ७५ थी ७८ वण्हि. ४; नंदी. १४३; जीय. ३५,३७ पिंड. १०७,२५२: अनुओ. ३१७; दस. १८,१३०,२७३,२७४,३७३,४८८. उद्देसण [उद्देशन] अंगसूत्र महिनुं 48न ते | उत्त.७५९; नंदी. १३९ थी १४९; | उद्देस्स [उद्दिश्य] 6देशीने उद्देसणंतेवासि [उद्देशनान्तेवासिन्] लेने भूगा || सूय. २१५: થી સૂત્ર ભણાવાયેલ હોય તે શિષ્ય | उद्देहगण [उद्देहगण] छैन मुनिनो मे गए। ठा. ३४२; वव. २६३: ठा. ८३७; उद्देसणकाल [उद्देशनकालावअध्ययन, शत, | उदेहिया (दे.) 645, में त्रिवन्द्रिय પદકે સ્થાનનાં એક વિભાગ પઠનનો કાળ ___ उत्त. १६०१: सम. ६०.११३,११४,११६ थी १२०, | उद्ध [उZ) १२३,१२९.१६४,२१५,२१६,२१९ थी | सूय. ३६१ २२७: भग. २६७,३२९,४५८,५१०,५८६: उद्देसणायरिय [उद्देशनाचार्य] 'माया' हि सूत्र पण्हा. ८: पन्न. ५८२ ભણાવનાર जंबू. ८,१३,३१,४०,४३,५३: ठा. ३४२: वव. २६१: उद्धंस [उत् + धृष]ोश ३२वो, भार उद्देसय [उद्देशक] सो ‘उद्देसग' भग. ६५०ः नाया. १६०.२०८: भग. २०८.२११,२१२,२७१,४८८.४९८ थी || निर. १२: ५०३.५०८.५१०.५१६,५३७.५५१. || उद्धंसण [उद्धर्षण माशश, निर्भत्सन ५६७.५८४.५८६,६०५,६०६,६७३.६८९.. नाया. १६० ७१५.७२७.८१४.८५६ थी ८५८.८६१. | उद्धंसणा [उद्दर्षण] हुमो ७५२ ८७७.८८१.८९७.९७०.९८२.९९०.९९३. | || भग. ६५०.६५१: राय. ७२, ९९४.९९७.१००० थी १००३.१००७. || निर. १२.१५: १०११ थी १०१५.१०१७.१०२० थी| | उद्धंसित्तए [उद्धर्पितुम्] भारपाने, Aust७२वाने १०२२.१०२५,१०२६,१०२९.१०३४, | राय. ७२: १०३६ थी १०३८.१०४२.१०४३. || उलंसेत्ता/उद्धयीश शन, भाशन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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