Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 430
________________ (सुत्तंकसहिओ) उच्चट्ठाण [ उच्चस्थान ] यु स्थान नाया. ८१; उच्चतर [ उच्चतर] अति उत्तम भग. १६४; उच्चत्त [ उच्चत्व] यार्ड, उत्तमता ठा. ५४,८६,८७,८९.९५ थी ९८, १५१,१५९, ३२१,३२७.३२९,४०६, ४७२,४७३. ५१२, ५३६, ५६९,५८३, ६६३, ६६८, ६७८, ६७९, ७०७,७४७ थी ७४९, ७५३, ७५६, ७८७,७९६,८६९,८७९, ८८०, ९१३,९१६, ९१९,९३०, ९९९; सम. ७, ८, १३, १४, १९, ३५, ४२,५०,५५, ६८, १११ थी ११४, ११६, १२१, १२८, १३८, १३९, १४८, १५९, १६३, १६९,१७८ थी १९३, २३२; भग. १३९, १४०, १६९,२९९, ३०७,४१८, ४४७,४५०, ५०९,५२८,५८६, ६१७, ८३५, १०४५, १०६७; नाया. १०९: उव. ५५: राय. १५,२७,२९,३३ थी ३६,३८,३९: जीवा. ११६, १६२, १६३, १६७, १६८, १७३ थी १७७, १८२, १८५ थी १८७,१८९ थी १९१,१९८,२०५, २०८, २०९, २८७, २९४,३२८, पन्न. ५१४; सूर. ७,४१,११७; चंद. ११,४५, १२१; जंबू. ४,८,१२ थी १५,२०,२१,३१,३४,३८ श्री ४०, ४६ थी ४८.५०,५३, १२७थी १३२, १३४.१३६ थी १४१, १४३.१४६.१५१, १५४.१५७, १६५ थी १६७,१६९.१७०. १७८, १९३, १९४.१९६, १९९,२२८.२३०. २४४,२६३,२६४,३६२: तंदु. ६६ : देविं. ९.१९४, १९६.२४०: अनुओ. २७०,२८०,२८२,२८४,२८६, २९३,२९५: उच्चत्तच्छाया [उच्चत्वछाया ] छायानो छट्टो लेह Jain Education International पण्हा. १९; सूर. ४१: चंद. ४५: उच्चत्तपज्जव [उच्चत्वपर्यव] अथापशानो निर्णय जंबू. ३९, ४०.४७ श्री ५०, ५३; उच्चत्तभयय ( उच्चत्वभृतक] २ २४भ सर्व अभ કરનાર સેવક કે નોકર ठा. २८५; उच्चत्तरिया [ उच्चतरिका ] अढार सिपिमांनी खेड લિપિ सम. ४५: उच्चत्ता [दे. ] भईत, अहसानी ईच्छा वगर पिंड. ३२२: सूर. ४१; उच्चतुद्देश [उच्चत्वोद्देश] 'अभ्यत्व' संबंधि उद्देश चंद. ४५: उच्चत्थवणय [उच्चस्थापनक] अंया भोढानुं भान વિશેષ, ચંબુ अनुत्त. १०; उच्चय [ उच्चय ] यो ढगलो, समूह, राशि भग. ५१९: उच्चय [अवचय] खेss अंत. २७ उच्चबंध [ उच्चयबन्ध] परा उपर भुडी ढगलो खा રૂપ બંધ भग. ४२४: उच्चयर (उच्चतर ] वधारे अंयु भग. १६०: उच्चलंत [उच्चलत्] यास, ४धुं ૪૨૯ दसा. ५३: उच्चाअ [दे. ] थाडी गयेस ओह. ५१८; उच्चाकुइय [ उच्चाकुचित] ४भी नथी अंथी भने ડગમગતી નહીં એવી શય્યા दसा. ५३: उच्चागोत [ उच्चगोत्र] युं गोत्र टा. ११३,७९७ उच्चागोय [उच्चगोत्र] युं गोत्र आया. ७८: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org :

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