Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 314
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૩૧ ૩ अहुणाधोय [अधुनाधौत] तct धोयेस जीवा. १४: आया. ३७५: निसी. १२४०: पन्न. १९५,१९६,१९९,२०३.२०५,२१७, दस. १५० ३९१,३९२,४४१,५२१,५५२,५५५, अहुणाभिन्न [अधुनाभिन्न] इंटे, नवा || ५८१; અંકુર ઉગેલ सूर. ३१,३५.१६०,१९४.१९५: आया. ४४५: चंद. ३५.३९.१६४,१९८,१९९: अहुणोज्जलिय [अधुनोज्ज्वलित] तुरंतनु जंबू. ४३,४४,२३६,३३४: અજવાળેલ निर. १० पुष्फि. ७ बुह. ६१: भग. २४५; दस. २५८; उत्त. २८२; नंदी. ८२: अहुणोवलित [अधुनोपलिप्त] तुरंतनुंली। अहेउ [अहेतु रेत्वाभास दस. ९६ः टा.४४४: सम. २३३; अहुणोववन्न [अधुनोपपन्न] तुरंतनो उत्पन्न येत भग. २६१: उत्त. ६११,६१३: भग. १५६,१६२,१७२,६७६; नंदी. १५५: अनुओ. ३१८; राय. ६५,६६; वण्हि . ३,७,८; अहेउय [अहेतुक/ रेतु रहित, नित्य . . उत्त. १५५; सूय. १७; अहुणोववन्नमित्तय [अधुनोपपन्नमात्रक] तुरंतनो अहेकम्म [अधःकर्मन्] आधाभ होप युतઉત્પન્ન થયેલ માત્ર આહારાદિ, જે આહારાદિના ઉપભોગથી राय. ४१: સાધુને અધોગતિમાં જવું પડે તે अहुणोववन्नय [अधुनोपपन्नक] तुरंतनो उत्पन्न થયેલ એવો તે पिंड. ११०,११६,११७: अहेकाय [अधःकाय] शरीरनो नीयनो माग राय. ६५.६६,८१; सूय. २४९: अहे [अथ] सो अथ/अह' अहेगाम [अधोगाम निथुम आया. ५५०: ठा. १४३; भग. १९४: भग. ८२ पुप्फि .५; अहेगारव [अधोगौरव] हे अमिमानथी अपने अहे [अधस्टु मओ ‘अधस्' आया. १,४.१८२,२०४,३०२,३३१,३३५, અધોગતિમાં જવું પડે તે રસ-ઋદ્ધિ કે શાતા ગારવ ३४९.३६०,३९२,४८२,५२०,५५० सूय. ३५,२४९: ठा. ८४६ः सम.५२ थी ५४.५९ थी ६३.९९.१०८.१०९, अहेचर [अधश्चर] लि माहिमा २३नार सा५ २३४.२३७.२३८,२४६: વગેરે પ્રાણી भग. ६९.१३७, १६३.१७०,१७५,१९४, ।। __आया. २४८: २९१.३०१.३१३,३२९,३९५,४२१, अहेतारग [अधस्तारक] पिशायनी मात ४४९.४५८.४७७.५४६.५५० पत्र. १९१: नाया. १०८: उवा. १६: | अहेतु [अहेतु भो ‘अहेउ' अंत. ३४: विवा. १०ः पन्न. ५७४; उव. ५५: राय. २८: अहेदिसा [अधोदिशा] नीथेन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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