Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 328
________________ (सुत्तंकसहिओ) आगंतगार [आगन्त्रगार] धर्मशाला, भुसाइरजानुं सूय. ७५२; आगंता [ आगत्य ] खावीने ठा. १७२: आगंतार [आगन्त्रगार] खो 'आगंतगार' आया. २९०,३७८, ४११ थी ४१३,४२३, ४९०.४९१,४९३,४९५: निसी. ११८ थी १२९,५४६,५४७, ५६५, ९७१ : आगंतु [आगन्तु] भुसार, अतिथि सूय. ६०,९७,५२७,६७३; आगंतुं [आगन्तुम] भाववाने भाटे सूय. ५८, २७७,५२६; उत्त. ९८२ राय. ६५; आगंतुग [ आगन्तुक ] भुसार, अतिथि ओह. ३३६: आगंतुछेय [आगन्तुच्छेद] भविष्यमां प्राप्तथवानुं હોય તેનું તલવાર આદિથી છેદન કરવું તે. सूय. ६७३: आगंतुभेय [ आगन्तुभेद] लावि प्राप्त वस्तुने ભાલાથી ભેદન કરવું તે. सूय. ६७३: आगंतुय [ आगन्तुक ] भुसार, अतिथि ओह. २१६: зrida (37chfac] új ulata, ślua, महानि. ४९३ : आगच्छ [ आ + गम् ] भेजव, पाभवु सूय. १८८.३४९, ६४४ : ठा. १४२,३४५,६५४: सम. १०१: भग. ६९.१७०.२९१,५८७ : नाया. ६०,७४ : अंत. १३; उब. १२, ५४: जीवा. ९८,१५६: पन्न. ३५३,६१४,६२०: सूर. ३३,३९: Jain Education International उवा. ४२: विवा. ९,३७ राय. ५७.७१; चंद. ३७,४३; जंबू. २९,३७,४६, ८०, ८४, २५८.२७५, २७७,३६० थी ३६२; तंदु. ३५; वव. २४२; उत्त. ३६५,८०४; अनुओ. २६५: आगच्छंत [आगच्छत्] भेजवतो, भगतो नाया. १६४: आगच्छमाण [आगच्छत्] लुखो 'उ५२' भग. ५४६; सूर. १९५; बुह. १०४; दसा. ४९: नंदी. १२०; ठा. ४५३: अंत. १३; चंद. १९९; आगच्छत्तए [आगन्तुम्] भेजववा भाटे, भगवा भाटे. ३२७ ठा. १९०,२५९, ३४५: भग. ७४७; राय. ६५: आगच्छित्ता [आगम्य] भेजवीने, भागीने भग. ३०० : आगड्डण [आकर्षण] खार्षएा, मेंयाव महानि. ३६९; आगत [आगत] खावेल, उत्पन्न आया. ५४०; पण्हा. ३५; जीव. १६३,१६४; पन्न. ४९८, ४९९; दसा. ७०; आगति [आगति] खो 'आग' भग. ११२: राय. ३१; For Private & Personal Use Only तंदु . २४; अनुओ. १५९,३०२: आया. १२७,१८३, ५३५; सूय. ५५४, ५७४ : ठा. २६,१७६, ५९४,७००: भग. २८२,४९८,८०७,८३८ थी ८४४. ८४६ थी ८४८, ८५२,८५३, ८५६ थी ८६०: राय. ८४: दसा. ११२; आगतिण्ण [ आगतिज्ञ ] 'भागति' ने भागनार सूय. ६३४ श्री ६३८: आगतिय [आगतिक] खो 'आगई' ठा. ७८,४९६,५५५,५९४,७००,८०५; www.jainelibrary.org

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