Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० ४ गङ्गासिन्धुमहानदीस्वरूपनिरूपणम् ४३ णिभिः सुबद्धं तीर्थम् अवतरणोत्तरणमार्गों यस्य तत्तथा अत्र प्राकृतत्वा तीर्थशब्दस्य पूर्वप्रयोगः सुबद्धशब्दस्य च परप्रयोगः, 'वट्टे' वृत्तं वर्तुलम् , 'आणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजले' आनुपूर्यसुजातवप्रगम्भीरशीतलजलम् आनुपूष्येण क्रमेण सुजातं सुनिष्पन्न वर्ग पाली यस्य, तच्च गम्भीरम् अगाधं शीतलं जलं यत्र तत्तथा, उभयो कर्मधारयः। 'संछण्णपत्तभिसमुणाले' संछन्नपत्रबिसमृणालं-संछन्नानि व्याप्तानि पत्रबिसमृणालानि पझानां पत्रकन्दनालानि यत्र तत्तथा, 'बहुउप्पलकुमुयणलिणसुभगसोगंधियपोंडरीयमहापोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त सयसहस्सपत्तपफुल्लकेसरोवचिए' बहूत्पलकुमुदनलिनसुभगसौगन्धिकपुण्डरीकमहापुण्डरीकशतपत्रसहस्रपत्रशतसहस्रपत्रप्रफुल्ल केसरोपशोभितं तत्र बहूनि प्रचुराणि प्रफुल्लानि विकसितानि यानि उत्पलानि चन्द्रविकाशोनि कमलानि, पदमानि सूर्यविकाशीनि कमलानि, कुसुदानि-कैरवाणि, तान्यपि चन्द्र विकाशीनि श्वेतरक्तादि वर्णानि भवन्ति तथा नलिनानि तित्थ सुबद्धे वढे आणुपुध्वसुजायवप्पगंभीरसीअलजले संछण्णपत्तभिसमुणाले) इसका तलभाग वज्रमय है इसमें जो वालुका समूह है वह सुवर्ण की और शुभ्र रजत की मिलावटवाली है इसके तटके आसन्नवी जो उन्नत प्रदेश है वे वैये और स्फटिक के पटल से निर्मित है इसमें प्रवेश करने का और बाहर निकलने का जो मार्ग है वह सुखकर है घाट इसके अनेक मणियों द्वारा सुबद्ध हैं यह वर्तुल गोल है इसमें जो जल भरा हुआ है वह क्रमशः आगे २ अगाध होता गया है और शीतल होता गया है यह कमलों के कन्दो एवं पत्तों नालो से व्याप्त हो रहा है । (बहु उप्पलकुमुदणलिण सुभगसोगंधिय पोंडरीय महापोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्तसयसहस्सपत्तपफुल्लकेसरोवचिए) यह प्रफुल्लित उत्पलों की, कुमु दो की, नलिनों की, सुभगों की, सौगन्धिकों की, पुण्डरीकों की, महापुण्डरीकों की, शतपत्रवाले कमलों की, हजार पत्रवाले कमलों की, एवं लाखपत्तों वाले कमलों की, किञ्जल्क से उपशोभित है चन्द्रविकाशी कमलों का नाम उत्पल है સમૂહો છે તે સુવર્ણની અને શુભ્ર રજતની વાલુકાઓથી યુક્ત છે, એના તટના આસનવત જે ઉન્નત પ્રદેશ છે તે વૈડૂર્ય અને સ્ફટિકના પટલથી નિર્મિત છે. એમાં પ્રવેશ કરવા માટે અને બહાર નીકળવા માટે જે માગે છે તે સુખકર છે. એના ઘાટે અનેક મણિઓ દ્વારા સુબદ્ધ છે, એ વલ–ગોલાકારમાં છે. એમાં જે પાણી છે તે અનુક્રમે આગળ-આગળ અગાધ થતું ગયું છે અને શીતળ થતું ગયું છે એ કમળના કંદો तेम०४ ५६i मने नासोथी व्यास य २wो छ 'बहुउप्पल कुमुदणलिण सुभगसोगंधिय पोंडरीय महापोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त सयसहस्सपत्तपफुल्लकेसरोवचिए' से प्रसित अपलोनी, भुहानी, नलिनानी, सुभगानी, सोधिनी, रीना, महापुरीना, શતપત્રવાળા કમળની, કિંજકથી ઉપરોભિત છે ચન્દ્રવિકાશી કમળનું નામ ઉત્પલ છે
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર