Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमने mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm तेति पञ्चदिगागतान् पुद्गलानाहरन्तीति । 'उस्सणं कारणं पडुच्च' 'उसण्णं' इति देशीयः शब्दः ततः 'उस्सणं' इति प्रायेण कारणविशेषं प्रतीत्य-आश्रित्य 'वण्णओ कालाई नीलाइं जाव मुक्किल्लाई' वर्णतः-वर्णापेक्षया कालानि नीलानि यावच्छुक्लानि । कालादारभ्य यावच्छक्लवर्णविशि ष्टानि द्रव्याणि । तथा-'गंधश्रो सुन्भिगंधाई दुन्भिगंधाह' गन्धतः सुरभिगन्धीनि दुरभिगन्धीनि 'रसओ तित्त जाव महराई रसतः तिक्त यावन्मधुराणि, तथा-"फासओ कक्खडमउय जाव निद्धलुक्खाई' स्पर्शतः कर्कशमृदुक यावत् स्निग्धरूक्षाणि तथा- तेर्सि' तेषामाहार्यमाणानां पुद्गलानाम् । 'पोराणे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे' पुराणान्-पूर्वस्थितान् वर्णगुणान् दिशा एक अधिक हो जाती है, केवल एक पर्यन्तवर्तिनी दक्षिण दिशा ही मलोक से व्या रहती है अतः वह जीव ऐसी स्थिति में चार पहले की और पांचवीं अघोदिशा, इस प्रकार पांच दिशाओं से अर्थात् ऊर्ध्वदिशा से पूर्व दिश से पश्चिम दिशा से उत्तर दिशा से अधोदिशा से आये हुए पुद्गलों को ग्रहण करता है ।
"उस्सण्णं कारणं पडुच्च" 'उस्सण्णं यह देशी शब्द प्रायः अर्थ में आया है इस लिये 'उस्सणं' प्रायः करके कारण "विशेप को लेकर वे जीव' "वण्णओ" वर्ण से "कालाई नीलाई जाव सुक्किल्लाई' कृष्ण, नील यावत् रक्त पीत शुक्ल वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं । तथा "गंधओ" गंध-से "सुभिगंधाई दुन्भिगंधाई" सुरभिगंध वाले एवं दुरभिगंध वाले पुद्गलो का आहार करते है। "रसओ तित्त जाव महुराई" रस सेतिक्त यावत् कटुक, कषाय, अम्ल मधुर रस से युक्त पुद्गलों का-आहार करते हैं । “फासओ कक्खडमउय जाव निद्धलुक्खाई" स्पर्श से कर्कश मृदुक यावत् गुरु लघु शीत उष्ण स्निग्ध रूक्ष स्पर्श वाले पुद्गलो का आहार करते है । तथा-"तेसिं पोराणे वण्णगुणे" ચાર દિશાઓ ઉપરાત અદિશામાંથી આવેલા પુદ્ગલેને પણ તે ગ્રહણ કરે છે આ સ્થિતિમાં તે માત્ર પર્યન્તવતિની દક્ષિણ દિશા જ અલેકથી વ્યાહત રહે છે, તેથી આ પરિસ્થિતિમાં તે જીવ ઊર્વ, પૂર્વ, પશ્ચિમ, ઉત્તર અને અર્ધ દિશામાંથી આવેલાં પુલને ગ્રહણ કરે છે.
'उसणं कारणं पढच्च" उस्सणं" मा देशी गामही श६ प्राय:- शर. से सभा मावेस छ, 'उस्सण्ण' घY ४शन २३ विशेष सतत ने 'वण्णो ' वर्ष थी 'कालाई नीलाई जाव सुकिल्लाइ' ? ए नीस, यावत्, सास पीज घाण वर्ण वाणा पुदवाना माडा२ ४२ छ तथा गंधयो' थी 'सुभिगंधाई दुभिगंधाइ' सुमधवाणा सनदुर्ग वाणा पुरानो माडार ४२ छे 'रसओ तित्त जाव मधुराइ २सथी तित यावत ४१४ाय मन्स, मने मधुर २सथी युत पुरानी मा२ ४२ छ फासओ कक्खडमउय जाव निद्धलुक्खाइ २५श थी ४४श, भृढ यावत् शु३ सधु शीत, Boey स्नि भने ३३९५४ वा पुगतान। म २ ४२ छ तथा 'तेसिं पोराणे वण्णगुणे' तमना व ३५ शुशान,