Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगम
स्त्रीत्वस्यान्तरं जघन्यत उत्कर्षतश्च ज्ञातव्यम् तत्र जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षतो वनस्पतिकाळ यावदन्तर स्त्रीत्वस्य ज्ञातव्यम् इति । कर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणामन्तरमाह - 'मणुस्सित्थीए स्वतं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्त उक्कोसेणं वणस्सइकालो' मनुष्यत्रियाः क्षेत्रं प्रतीत्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्षेण वनस्पतिकालो वनस्पतिकालं यावदन्तरं स्त्रीत्वस्य भवतीति । 'धम्म चरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं' धर्मचरणं चरणधर्मं प्रतीत्य जघन्येनैक समयम् “उक्कोसेणं अतं काले जाव अवड्ढपोग्गलपरियहं देणं' उत्कर्षेणानन्तं काल यावदपार्थपुद्गलपरावर्त देशोनम् । अयं भावः कर्मभूमिकमनुष्य स्त्रियाः कर्मभूमिक क्षेत्र प्रतीत्य जघन्येनान्तमुहूर्त्तमुत्कर्षतोऽनन्तकालवनस्पतिकालप्रमाणम् धर्मचरणं प्रतीत्य जघन्येन समयेकं सर्वनघ
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सामान्य मनुष्य स्त्रियों का पुनः स्त्रीत्व की प्राप्ति का विरह काल जघन्य और उत्कृष्ट से जान लेना चाहिए जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त का और उत्कृष्ट से वनस्पति काल प्रमाण वह विरह काल है ऐसा जानना चाहिए,
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अब कर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों के विषय में कहते हैं – ' . मनुस्सित्थीएं खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं क्णस्सईकालो " इसी प्रकार से क्षेत्रको अपेक्षा लेकर कर्मभूमिक मनुष्य स्त्री मनुष्य स्त्री की पर्याय को छोड़कर पुनः उसी पर्याय की प्राप्ति कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त्त के व्यतीत हो जाने के बाद और उत्कृष्ट से वनस्पति काल के व्यतीत हो जाने के बाद प्राप्त करती है " धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अनंत कालं जाव अवइढ पोग्गलपरियहं देणं" धर्माचरण - चारित्र धर्मको लेकर जबन्य से अन्तर एक समय का और उत्कृष्ट से अन्तर अनन्त काल तक का यावत् देशोन अपार्घ पुद्गल परावर्त तक का है अर्थात् प्राप्त की गई चरणलब्धि इतने समय
મનુષ્ય અચેાના કરીથી સ્ત્રીપણાની પ્રાપ્તિના વિરહકાળ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી વનસ્પતિકાલ પ્રમાણુ કહેલ છે. તેમ સમજવું.
हवे उभं भूभिन भनुष्य स्त्रियोना सभधभां सूत्ररथन रे छे. "मणुस्सित्थीप खेतं पच्च जहन्नेणं अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो" भेट अभावे क्षेत्रनी अपेक्षाथी કમ ભૂમિજ મનુષ્યસ્રી, મનુષ્યસ્રીની પર્યાયને છોડીને ફરીથી મનુષ્ય સ્ત્રીના પર્યાયની પ્રાપ્તિ એછામાં ઓછા એક અંતર્મુહૂત વીત્યાપછી અને ઉત્કૃષ્ટથી વનસ્પતિકાળ વીતી ગયા પછી अरे छे "धम्मचरणं पटुच्च नहण्णेण एक्कं समयं उक्कोसेण अणतं कालं जाव अवहढपोग्गलपरियहं देणं" धर्भायर यास्त्रिनेसने धन्यथी ये सभयनु म ंतर अने ઉત્કૃષ્ટથી અનંતકાલસુધીનું... અંતર યાવત્ દેશેાન અપાય પુદ્ગલપરાવત સુધીનું છે.
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