Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवामिगमत्र
पुरुषाणां भवस्थितिमानं कर्थितम् , अधुना पुरुषः 'पुरुषत्वममुञ्चन्' कियन्त कालं निरन्तर मवतिष्ठते । इति निरूपणार्थमाह-'पुरिसे "णं इत्यादि पुरिसे ण' भंते पुरुषः खलु भदन्त ! 'पुरिसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ' पुरष इति-पुरषरूपेण 'पुरपभावस्यापरित्यागेनेत्यर्थः कालंत. कियच्चिरं कियन्तं कालं यावद्वतीति प्रश्नः भगवानांह-गोयमा' इत्यादि, गोंयमी है गौतम ! 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्त जघन्येनान्तर्मुहूर्तम , तावत्कालादूर्ध्व 'मृत्वा ख्यादि भावंगमना 'दिति । 'उक्कोसेण सागरोचमहत्तं सातिरेग" " उत्कर्पण' सागरोपमपृथक्त्वं सातिरेकम् द्विसागरोपमादारभ्य नवसागरोपमपर्यन्तं' सामान्यत - स्तिर्यम् नरामरभवेषु एतावन्तं' कालं पुरुषेष्वेव भावात् सातिरेकता च 'कतिपयमनुष्यभवैरव · ज्ञातव्या तत परं पुरुपनामकर्मोदयाप्रकार की स्थिति तेतीस मागरोपम की है। इस क्रम से देव 'पुरुषों की स्थिति संवन्धी वक्त व्यता असुरकुमार से लेकर सर्वार्थसिद्ध देवपुरुषों तक कहलेनी चाहिये। . ..."
पुरुषों की भवस्थिति का प्रमाण कहकर अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि पुरुप पुरुषत्व को कितने काल तक नहीं छोड़कर निरन्तर पुरुष होता है "पुरिसे णं भंते" इत्यादि। "पुरिसे णं भंते ! पुरिसेत्ति कालभो केवच्चिरं होइ"हे भदन्त ! पुरुष अपने पुरुष भाव को कितने काल तक त्याग नहीं करता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा ! जहन्नेणं अंतो मुहृत्तं उक्को सेणं सागरोयमपुहुत्तं सातिरेग" हे गौतम ! पुरुष' अपने पुरुषभाव का त्याग नहीं करे तो वह जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त तक नहीं करे और उत्कृष्ट से वह कुछ अधिक दो सागरोपम. से लेकर ९ नौ "सागरोपम तक नहीं करे. क्योंकि इतने काल तक वह निरन्तर तिर्यग् नरं अमर इन भवों में पुरुषरूप से ही उत्पन्न होता रहता है, यहां सातिरेकता कुछ अधिकता कही गई है वह कितनेक" मनुष्यभवोकी अपेक्षा બન્ને પ્રકારથી તેત્રીસ સાગરોપમની છે. આ ક્રમ પ્રમાણે દેવ પુરુષોની સ્થિતિ સધીવક્તવ્યતા અસુર કુમારથી લઈને સર્વાર્થસિદ્ધ દેવ પુરુષો સુધી કહેવી જોઈએ. ..
પુરુષોની ભવસિદ્ધિનું પ્રમાણુ કહીને, હે સૂત્રકાર એ બતાવે છે કે પુરુષ પુરુષ્ટ્રपणाने सा आण ५ त छया, विना नि त२ पुरुष मनी २९ छे, "पुरिसे ण भंते ! पुरिसेत्ति कालओ केवच्चिरं होई".डे, भगवन् २५ पोताना पुरुषाने ru सुधी त्या२ता, नथी १ मा प्रश्नमा उत्तम प्रभु गौतम पाभी ४३२ का गोमा, ! जहण्णेण अंतो मुहुत्त , उक्कोसेणं सागरोवमपुहुत्त) सातिरेग" गौतम पुरुष पोताना पुरुषाने त्या ४२ तोते.धन्यथी मे मतभुत सुधी मने थी ते વધારે બે સાગરોપમથી લઈને નવ સાગરોપમ સુધી ત્યાગ કરતા નથી, કેમકે આટલો કાળ સુધી તે નિર તર તિફ નર અમર આ ભવમાં પુરુષપણાથી જ ઉત્પન્ન થતા રહે છે અહિયાં સાતિરેકપરું કંઈક અધિક કહેલ છે તે કેટલાક મનુષ્ય ભોની અપેક્ષાથી સમજી લેવું