Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिकाटीका प्र०२ ।
नपुंसकस्वरूपनिरूपणम् ५७५ __ अथ तृतीयं तिर्यग्योनिकनपुंसकविषयकमल्पबहुत्वं दर्शयति----'एएसिण भंते' एतेपां खल भदन्त । 'तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं' तिर्यग्योनिकनपुंसकानाम् । 'एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' एकेन्द्रियतिर्यगृयोनिकनपुंसकानाम् । 'पुढवीकाइयजाववणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' पृथिवीकायिकयावत्, अत्र यावत्पदेन अप्कायिकतेजस्कायिकवायुकायिकतिर्यग्योनिकनपुंसकानां वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियतिर्यगू योनिकनपुंसकानाम् । 'वेई दियतेइंदियंचउरिंदियपंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकानाम्, 'जलयराणं' जलचरतिर्यगूयोनिकनपुसकानाम् 'थलयराणं' स्थलचरतिर्यग्योनिकनपुंसकानाम् 'खहयराणय' खेचरतिर्यगूयोनिकनपुसकानां च 'कयरेकयरेहिंतोजावविसेसाहियावा' कतरे कतरेभ्यो यावदल्पा वा बहुका वा तुल्यावा विशेषाधिका वा भवन्तीति यिक ।७। तृतीय अल्पबहुत्व इस प्रकार से है- "एते सिणं भंते ! तिरिक्ख जोणिय णपुंसगाणं" हे भदन्त ! इन तिर्यग्गोनिक नपुंसको के, "एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं" एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसकों के, "पुढवी जाव" पृथिवी कायिक नपुंसको केयावत्-अप्कायिक नपुंसकों के, तैजस कायिक नपुंसको के, वायु कायिक नपुंसको के "वणस्सइकाइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं' वनस्पतिकायिक नपुंसको के "वेइंदिय तेइंदिय-चउरिदिय पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगाणं" दोइन्द्रिय नपुंसको के, तेइन्द्रिय नपुंसकों के, चौइन्द्रिय नपुंसको के, पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसको के, “जलयराणं" जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसको के "थलयराणं" स्थलचर तिर्यग्योनिक नपुंसको के "खयराणय" खेचर तिर्यग्योनिक नपुंसको के बीच में "कयरे कयरे हितो" कौन किन से अप्पा वा अल्प है ? कौन किनसे "बहका वा” अधिक है ? कौन किनसे "तुल्ला वा" बराबर है ? और कौन किनसे “विसेसाहिया वा" विशेषाधिक है ? उत्तर में प्रभु कहते है
હવે ત્રીજા પ્રકારના અલ્પ બહુપણાનું કથન કરવામાં આવે છે. _ "एएसिं णं भंते ! तिरिक्खजोणिय णपुंसगा " है भगवन् २॥ तिव्यनि नससीमा “एगेंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा ण" मे द्रिय वा तिय योनि नपुस। भा “पुठवी जीव" पृथ्वयि नसमा यावत् २०५५४ नपुसमा ते४२४५४ न सभा वायुय४ नपुसमा “वणस्सइ काइय पगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं" पनपति यिमा “बेइदिय ते इंदिय-चउरिदिय-पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिय ण पुंसगा णं" मेद्रिय वा नसभा, त्र छद्रिय वा नसभा, पाय घाय पण तिच्यानि नपुसमा "जलयराण" सय२ पयन्द्रिय तिर्थयानि नपुसभी "थलयराण" स्थाय२ तिर्थयानि नयु सीमा "खहयराणय" ५२ तिच्या (न नसभा "कयरे कयरे हितो "ओए डोनाथी "अप्पा वा" २८५ छ ? अणु अना थी “वहुका वा" पधारे छ १ र जोनाथी "तुल्ला वा' तुल्य-समान छ ? भने ष्य
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