Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 594
________________ ५७० जीवामिगमसूत्रे देनं शर्कराप्रभावालुकाप्रभापद्प्रभाधूमप्रभातमःप्रभापृथिवीनैरयिकनपुंसकानां सग्रहो भवति 'कयरे कयरे हितो जाव चिसेसाहिया वा' कतरे नारकाः कतरेभ्यो नारकेभ्यो यावदल्पा वा वहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वेति द्वितीयाल्पबहुत्वविपयको द्वितीयः प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वत्थोवा' सर्वस्तोका' सर्वेभ्यो नारकेभ्योऽल्पाः, 'अहेसत्तमपुढवीणेरइय णपुंसगा' अधःसप्तमतमतमापृथिवी नारकनपुंसकाः, अभ्यन्तरश्रेण्यसख्येयभागवर्तितम प्रदेशराशिप्रमाणत्वादिति । 'छटपुढवीणेरइय णपुंसगा असंखेज्जगुणा' तमतम पृथिवीनारकनपुसकेभ्यः तम' प्रभाख्यपष्टपृथिवीनरयिकनपुंसका असख्येयगुणा अधिका भवन्ति, 'जाव दोच्चपुढवीणेरट्यणपुंसगा असंखेज्जगुणा' यावद द्वितीयपृथिवीनर यिकनपुंसका असख्येयगुणा अधिका भवन्ति । - नपुंसको से लेकर यावत् शर्करा प्रभा वालुका प्रभा पंक प्रभा धूम प्रभा तमा प्रभा और तमतमा अधः सप्तम पृथिवी के नैरयिको के बीच में "कयरे कयरे हितो जाव विसेसाहिया" कौन नैरयिकनपुंसक किन नरयिकनपुंफकों से यावत् अल्प बहुत तुल्य और विशेषाधिक है ? इस प्रकार का यह द्वितीय अल्प बहुत्व विषयक प्रश्न है । इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते है---"गोयमा । सव्वत्थोवा अहेसत्तम पुढवी णेरइय णपुंसगा" हे गौतम ! सबसे कम अद्य सप्तम पृथिवी के नैरयिक नपुंसक है क्योकि टनका प्रमाण अभ्यन्तर श्रेणी के असख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश होते है उतना कहा गया है 'छट्ट पुढवी णेरइय णपुंसगा असंखेज्ज गुणा सातवी पृथिवी के नैरयिक नपुंसको की अपेक्षा जो छठवीं तमा नाम की पृथिवी है उसके नेरयिक नपुसक असख्यातगुणे अधिक है । "जाब दोच्च पुढवीणेरइय णपुंसगा असंखेगाणं जाव अहे सत्तम पुढवी नेदइय नपुंसगाणय" उ सावन मा २त्न प्रमा पृथ्वीना नैरયિક નપુસકેથી લઈને યાવત્ શર્મા પ્રભા, વાલુકા પ્રભા, પંક પ્રભા, ધૂમ પ્રભા તમ પ્રભા मन तमस्त प्रमा-मेटले उ -ससभी पृथ्वीना नैरयिमा "कयरे कयरे हितो जाव विसेसा हिया" ४या २(५४ नस। ४४ता यावत् ६५, पधारे, तुल्य भने विशेषाधिs છે? આ રીતને આ અ૯પ બહુપણાના સંબંમમાં બીજો પ્રશ્ન છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ गौतम स्वामीन ४ छ - "गोयमा ! सव्वत्थो वा अहे सत्तम पुढवी रहयण पुंसगा" હે ગૌતમ ! સૌથી ઓછા અધ, સપ્તમી પૃથ્વીના નૈરયિક નપુંસકે છે. કેમકે--આમનું પ્રમાણ આભ્યન્તર શ્રેણીના અસ ખ્યાતમા ભાગમાં જેટલા આકાશ પ્રદેશ હોય છે, એટલું ४धु छे 'छह पुढवीनेरय णपुंसगा असंखेज्जगुणा" सातमी सीना नयि नस। કરતાં જે છઠ્ઠા તમા નામની પૃથ્વી છે, તેના નૈરયિક નપુસકો અસંખ્યાત ગણું વધારે છે. "जाव दोच्च पुढची णेरहवण पुंसगा असंखेज्ज गुणा' पृथ्वी १२(५४ यावत मा पृथ्वीना

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