Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १.
__ औदारिकत्रसजीवनिरूपणम् १९५ श्रुतज्ञानद्वयमात्रस्यैव भावात् 'जे अन्नाणी ते नियमादुअन्नाणी' ये तु द्वीन्द्रिया अज्ञानिन स्ते तु नियमात् द्वयज्ञानिनो भवन्ति तद्यथा-'मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य' मत्यज्ञानिनश्च श्रुताज्ञानिनश्च भवन्ति मतिश्रुताख्या ज्ञानद्रव्यस्यैव भावात् । योगद्वारे-'णो मणजोगी वयजोगी कायजोगी' ते द्वीन्द्रियजीवा नो मनोयोगिनो भवन्ति किन्तु वचोयोगिनः सुव्यक्तवचोयोगसद्भावात् तथा काययोगिनश्च भवन्ति ।
मथोपयोगद्वारे -'सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि' ते द्वीन्द्रियजीवाः साकारोपयोगवन्तोऽपि भवन्ति तथा अनाकारोपयुक्ता अपि-अनाकारोपयोगवन्तोऽपि भवन्तीति भावः आहारद्वारे-'आहारो नियमा छदिर्सि' द्वीन्द्रियजीवानामाहारस्तु नियमात् पइदिशि षड्भ्यो दिग्भ्य आगतान् पुद्गलानाहरन्ति त्रसनाड्या मध्ये एव द्वीन्द्रियाणां सद्भावादिति । उपपातद्वारेसुयनाणी य" माभिनिबोधिक ज्ञानी और श्रुतज्ञानी आभिनिबोधिक और श्रुत इन दो ज्ञानों से युक्त होते हैं। 'जे णाणी ते णियमा दुण्णाणी । यदि ये ज्ञानी होते है तो वे नियम से दो ज्ञान वाले होते है-"तं जहा" जैसे "आभिणियोहियनाणी सुयनाणी य" आभिनिबोधिक जानी और श्रुतज्ञानी आभिनिबोधिक और त इन दो ज्ञानों से युक्त होते है । सो ये दो ज्ञान इनके अपर्याप्तावस्था में होते है । "जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी" जो ये दो अज्ञानवाले होते हैं तो ये उस समय "मइ अन्नाणी य मुय अन्नाणी य" मत्यज्ञान और श्रुताज्ञानवाले होते है । योगद्वार में ये "णो मणजोगी वयजोगी कायजोगी' मनोयोगी नहीं होते हैं किन्तु वचनयोगी-इनके वचोयोग का भव्यक्तरूप से सद्भाव होता है और काययोगी होते हैं। उपयोगद्वार में ये-सागारोपउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि" साकारोपयोगवाले भी होते हैं आर अनाकारोपयोगवाले भी होते है। आहारद्वार में ये—'आहारो नियमा छद्दिसिं" नियम से छह दिशाओ में से आगत पुद्गल द्रव्यों का आहार करते हैं। क्योकि द्वीन्द्रियो का सद्भाव त्रस नामों के मध्यमें कहा गया है। हाय छ "तं जहा" र "आभिणियोहियनाणी सुयनाणी य" मामिनिमाधिः ज्ञानी भने શ્રુતજ્ઞાની. અર્થાત તેઓ આમિનિબાધિક જ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન આ બે જ્ઞાનવાળા હોય છે. मारे ज्ञान यानी भासावस्थामा डाय छे. "जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी' ले मज्ञानवाणा डाय छ, त त मे अज्ञानवाणा डोय छे. सभ:-"मइ अन्नाणी य सुय भन्नाणीय" भात अज्ञान भने श्रुत मज्ञान मा मे सजानवाणा डाय छे योगदारमा "णो मणजोगी वयजोगी कायजोगी" तमा मनोयोगवाणा खाता नथी. ५२ तु क्यन योगवा એટલે કે તેમાં વચન ગને અવ્યક્ત રૂપે સદભાવ હોય છે, તથા કાયયેગવાળા હોય છે.
उपयोगबारमा तमे। "सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि" सा२।५योगवा ५ હોય છે અને અનાકારપગવાળા પણ હોય છે
___ पाहावामा "आहारो नियमा छदिसिं" नियमथी छये सिमामाथी मासा પુદ્ગલદ્ર ને તેઓ આહાર કરે છે કેમ કે દ્વીન્દ્રિયને સદ્ભાવ ત્રસ જીવેમાં કહે છે.