Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमन अयं च द्वयज्ञानिनश्च व्यज्ञानिनश्चेति विकल्पः असज्ञिमध्याद् ये देवा उत्पधन्ते तान् माश्रित्य ज्ञातव्यम् इति ज्ञानद्वारम् ॥ योगद्वारे --'तिविहे जोगे' त्रिविधो योगः देवानां मनोवचनकायात्मकस्त्रिप्रकारकोऽपि योगो भवतीति योगद्वारम् ।। उपयोगद्वारे-'दुविहे उपजोगे' द्विविध उपयोगः, देवानां साकारोपयोगश्च भवति तथाऽनाकारोपयोगश्चापि भवतीत्युपयोगद्वारम् ॥ आहारद्वारे-'आहारो णियमा छदिर्सि' देवानामाहारो नियमात् पदिशि, लोकमध्येऽवस्थानात् । 'ओसन्नं कारणं पडच्च वष्णो हालिमुकिल्लाई जाव आहारमाहरेति' मोसन्न प्रायः कारणं प्रतीत्य-प्रायश. कारणमाश्रित्य वर्णतो हारिद्रशुक्लान माहारपुद्गलान् यावदाहारमाहरन्ति देवाः,यावत्पदेन-गंधओ सुभिगंधाइं, रसओ अविलमहुराई. फासो मउय इनमें कितनेक दो अज्ञानवाल और कितनेक तीन अज्ञान वाले होते है। इनमें जो दो अज्ञानवाले हैं वे नियम से मत्यज्ञान श्रुतज्ञान वाले होते हैं । और जो तीन अज्ञान वाले होते हैं वे नियम से मत्यज्ञान वाले श्रुत अज्ञान वाले और विभंगज्ञान वाले होते हैं। ऐसा यह जो मज्ञानी होने का दो प्रकार का विकल्प है वह जो देव असंज्ञियों में से आकर के उत्पन्न होते हैं उनकी अपेक्षा से हैं । योग द्वार में-"तिविहे जोगे" इनके मनोयोग वचनयोग और काययोग ऐसे तीनों योग होते हैं। उपयोग द्वार में-"दुविहे उवजोगे" इनको दोनो प्रकार का उपयोग होता है। साकार उपयोग भी होता है और अनाकार उपयोग भी होता है आहार द्वार में-"आहारो नियमा छद्दिसिं" इनका आहार नियम से लोक के मध्य में इन्हें स्थित होने के कारण छहो दिशाओ में से आगत पुद्गलो का होता है। "ओसन्न कारणं पडुच्च वण्णओं हालिमुविफललाई जाव आहारमाहरेंति प्रायः कारण को लेकर ये वर्णकी अपेक्षा हारिद्रवर्ण वाले शुक्ल वर्ण वाले पुद्गलों का
હોય છે તેઓ મતિ અજ્ઞાન અને શ્રુત અજ્ઞાન વાળા હોય છે, અને જેઓ ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોય છે, તેઓ મતિ અજ્ઞાનવાળા શ્રત અજ્ઞાન વાળા અને વિસંગ જ્ઞાન વાળા હોય છે એવી રીતે અજ્ઞાની હેવાના સબંધમાં જે આ બે પ્રકારોને વિકલ્પ છે, તે જે દેવ અસંશિયોभांथी मावीन. त्पन्न याय छ, तमानी अपेक्षाथी उस छ योगवारमा-"तिविहे जोगे" તેઓને મનોગ, વચનયોગ, અને કાય ચોગ, એવા ત્રણે ગ હોય છે. ઉપયોગકારમાં"दुविहे उपजोगे" तमामा सा॥२ उपयोग मन मना२ पयागम में प्रधान1 64. योग डाय छे भाडाद्वारमां-"आहारो नियमा छहिसि" तभाना माडार नियम લોકની મધ્યમાં તેઓ રહેલા હોવાથી છ એ દિશાઓમાંથી આવેલા પુદગલોને હોય છે. "ओसन्नं कारणं पढुच्च वण्णओ हालिदसुकिल्लाइ जाच आहामाहरेंति" प्राय: २४ने લઈને તેઓ વર્ણની અપેક્ષા હાલિદ્ર-કહેતા પીળા વર્ણવાળા, શુકલ વર્ણવાળા પુદ્ગલેને આહાર કરે છે. અહિયાં યાવત્પદથી જે પાદને સ હ થાય છે, તે પાઠ ટીકામાં બતાવ્યું