Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
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जोणिइत्थीओ तिविहाओ पन्नत्ताओ' तिर्यग्योनिक स्त्रिय त्रिविधा:- त्रिप्रकारका प्रज्ञप्ताःकथिताः । 'तं जहा' तयथा - 'जलपरीभो' जलचयैः जले चरन्ति - गच्छन्ति भवन्ति वा यस्ता जलचर्य:, 'थलयरीओ' स्थलचर्य: स्थळे चरन्ति भवन्ति वा यास्ता. स्थळचर्य । 'खहयरीओ' खेचर्यः खे - प्राकाशे चरन्ति परिभ्रमन्ति यास्ताः खेचर्य । 'से किं तं जलयरीओ' अथ कास्ता: जलचर्य., जलचरीणां कियन्तो भेदा इति प्रश्न उत्तरयति 'जलयरीओ पंचविहाओ पन्नत्ताओ' जलचर्य: जलचरस्त्रियः पश्वविधाः - पश्वप्रकारिकाः प्रज्ञताः कथिता । तं जहा' तद्यथा-' - 'मच्छीओ जाव सुंखुमारीओ' मत्स्यो यावत शिशुमार्यः, मत्स्यस्य स्त्री मत्य डीप्पत्यये य लोपे पियति, तस्याः प्रथमाबहुवचने मत्स्य इति रूपम् । अथ यावत्पदेन कच्छपमकरग्राहस्त्रीणा संग्रहो भवति, तथा च - मत्स्य कच्छपम करग्रादृशिशुमार स्त्रीभेदात् पञ्चप्रकारका जलचरस्त्रियो भवन्तीति ॥ ' से कि तं थलयरीओ' अथ कारता स्थलवर्यः स्थचरीणा कियन्तो भेदा इति प्रश्न, उत्तरयतितं तिरिक्खजोणित्थोओ" हे भदन्त । तिर्यग्योनिक श्रिया कितन प्रकार की हैं। "तिरि
जोणित्थी जो तिविहाओ पन्नत्ताओ" हे गौतम तिर्यग्योनिकखिया तीन प्रकारकी कहां गई ड़ें- “तं जहा” जैसे -"जलयरीओ, थलयरीओ, खहयरीओ" जलचरी, चरी और खेचरी, जो जल में चलती है या होत' है वे जलचरी हैं, वो स्थल में चलती हैं या होती हैं वे स्थलचरी है जो आकाश में चलती हैं-उड़ती है - वे खेचरी है । " से किं तं जलपरीओ" हे भदन्त ! जळचर स्त्रियो के कितने प्रकार भेट हैं ' गातम ! 'जलयरिओ पंच विद्याओ पन्नत्ताओ" जलचर मियो के पांच भेद हैं- "तं जहा " "जसे- "मच्छिओ जाव मुंसुमारिओ स्त्रिलिङ्गवाली मछलो यावत् सुपमारी यहाँ याच पद से कच्छपी मकरबी, ग्राहस्री इन तोन जलचरत्रियों का संग्रह हुआ हे इस प्रकार मत्स्यस्त्री, कूर्मस्त्री, मरुरखी ग्राहस्री और शिशुमारस्त्री के भेद से पांच प्रकार की जलचरत्रियां होती हैं । "से किं तं थलयरिओ" थलचरस्त्रियां हे भदन्त ! कितने प्रकार की होती है ? गौतम ! "थलचरिओ दुविधाओ
तिरिक्खजोणित्थओ तिविहाय पण्णत्ताओ" हे गौतम! तिर्यग्योनिः स्त्रिये। ત્રણ પ્રકારની महेवामा आवे छे "तं जहा” ते प्रमाणे छे “जलयरीओ, थलयीओ, खहयरीओ" ४सयरी, સ્થલચરી અને ખેચરી જે જળમાં ચાલે છે, અગર જળમાં રહે છે, તે જળચરી કહેવાય છે જે સ્થલમાં ચાલે છે, અગર રહે છે, તે સ્થલચરી કહેવાય છે જે આકાશમા ચાલે છે-ઉડે છે ते जेयरी महेदाय छे " से कि त जलयरोओ” हे भगवन् भयर स्त्रियोना डेंटला लेते। छे ? “गोमा ! जलचरीओ पंचविहाओ पण्णत्ताओ" हे गौतम ! सयर श्रियाना पंथ, लेढा अहेला छे. "त जहा " ते या प्रमाणे हे "मच्छीओ जाव सुंखुमारीओ" श्री ચિન્હ વાલી માછલીએ, કાચીએ, મઘરી, ગ્રહક્ષ્મી અર્થાત્ ાહો, અને સુસુમારી એટલે मत्स्य श्री हभ स्त्री, भ४२ स्त्री, ग्राडु स्त्री, अने भिसुमारे स्त्री, गा रीतेना लेहथी पांथ प्रहरी सर स्त्रियो होय है " से कि तं थलयरितो" हे भगवन् स्थारस्त्रियो मेरो पृथ्वी पर यक्षवा वाणी स्त्रियोना डेटा हो उडेला हे ? " गोयमा ! थलयरीओ