Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रद्योतिका टीका प्र० १
संमूच्छिमजलचर तिर्यक्पञ्चेन्द्रियजीवनिरूपणम् २३७
गच्छन्ति अत एवोच्यते 'सेसेसु पडिसेहो ' शेषेषु रत्नप्रभानरकातिरिक्त नरकेषु प्रतिपेधो वक्तव्यः, इत उद्वृत्य नरके गच्छति तदा रत्नप्रभायामेव केवल नान्यत्रेति भावः । ' तिरिरसु सव्वेसु उववज्जंति' जलचरसंमूच्छिमा इत उद्वृत्य यदि तिर्यग्क्षु उत्पद्यन्ते तदा सर्वेष्वपि तिर्यग्क्षूत्पद्यन्ते न कुत्रापि प्रतिषेध इत्यर्थ । 'सखेज्जवासाउएसु वि' संख्येयवर्षायुकतिर्यग्वपि उत्पद्यन्ते 'असंखेज्जवासा उस वि' यसंख्यातवर्षायुष्वपि तिर्यग्क्षु जलचरसंमूच्छिमा समुत्पद्यन्ते इति । 'चउप्पएस वि' चतुष्पदेष्वपि उत्पद्यन्ते, पक्खीसु वि' पक्षिष्यपि इमे जलचरसंमूर्च्छिर्माः इत समुद्धृत्ता' सन्तः समुत्पद्यन्ते । 'मणुस्सेसु सव्वेषु कम्मभूमिसु' इमे जलचरसंमूच्छिमा इन उद्वृत्य यदि मनुष्येषु उत्पद्यन्ते तदा सर्वेष्वपि कर्मभूमिकमनुष्ये पूत्पद्यन्ते 'नो अकम्मभूमिएस' न अकर्मभूमिकेषु मनुष्येपूत्पद्यते । 'अंतरदीवसु वि' अन्तरद्वीपेष्वपि
जीव प्रथम नरक तक ही जा सकते है । यही बात "सेसेसु पडिसेहो " इस सूत्र द्वारा प्रकट की गई है । इस प्रकार रत्नप्रभा से अतिरिक्त नरको में इसका उत्पाद नहीं होता है । " तिरिएस सव्वे वि उवजंति" तिर्यञ्चों में सब प्रकारके तिर्यञ्चो में उत्पन्न होते हैं तिर्यञ्चों में कहीं पर भी उत्पन्न होने का प्रतिषेध नहीं है । अतः ये समस्त तिर्यञ्चो में उत्पन्न होते हैं । "संखेज्जवासाउएस वि" सख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यम्चो में भी उत्पन्न होते हैं । "असंखेज्जवासाउएसु वि” असंख्यात वर्ष की आयुवाले तिर्यञ्चो में भी उत्पन्न होते है । "चप्प वि" चतुष्पदो में भी उत्पन्न होते है- "पक्खीसु वि" पक्षियो में भी उत्पन्न होते हैं " मणुस्सेसु सव्वेसु कम्मभूमिसु" समस्तकर्मभूमि के मनुष्यो में उत्पन्न होते है । पर "नो अकम्मभूमिएसु" ये जलचर संमूच्छिम जीव अकर्मभूमि के मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते हैं । "अंतरदीवएस वि” अंतर द्वीपज मनुष्यो में ये उत्पन्न होते है । चाहे वे सख्यात वर्ष
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सुधी ४ अर्ध शठे छे ये वात 'सेसेसु पडिसेहो' या सूत्रद्वारा अगर भा રીતે રત્નપ્રભા શિવાયના નરકામાં તેને ઉત્પાદ્ય-ઉત્પત્તિ થતા નથી ત્ત્તર સવ્વસુ वि उववज्जति' तिर्थ ययोनिभां मधान प्रारनी तिर्ययोभां उत्पन्न याय તિય ચામાં કયાંય પણ ઉત્પન્ન થવાના નિષેધ કરેલ નથી, તેથી તેએ સઘળા તિય ચામાં ઉપ-ન થાય छे 'संखेज्जवास उपसु वि' संख्या वर्षांनी आयुष्यवाणातिय शोभा पशु उत्पन्न 'धाय छे. 'असंखेज्जवासाउपसु वि' असभ्यात् वर्षांनी आयुष्यवाणा तिर्यथेोभां पशु उत्यन्न थाय हे 'चउपपसु वि" तुष्यहोमा पशु उत्पन्न थाय छे " पक्खीसु वि” पक्षीयेोभां या उत्पन्न थाय छे 'मनुस्सेलु सव्वेसु कम्मभूमिसु" सघणा उर्भ भूमिना मनुष्याभां ઉત્પન્ન થાય છે ' नो अकम्मभूमिषसु" मा ४सयर सभूर्च्छिभ लव કમ लुभिना मनुष्योभां उत्पन्न थता नथी, "अंतरदीवपसु वि" अंतरद्वीपक मनुष्योभी તેએ ઉત્પન્ન થાય છે ચાહે તે તેએ સંખ્યાત વષઁની આયુષ્યવાળા હોય કે અસध्यात वर्षांनी आयुष्यवाणा होय ते वात मतावतां सूत्रभर उडेछे – “संखिज्जवासा