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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-१३ सूत्र-२६
तेरह क्रियास्थान कहे गए हैं | जैसे-अर्थदंड, अनर्थदंड, हिंसादंड, अकस्माद् दंड, दृष्टिविपर्यास दंड, मृषावाद प्रत्यय दंड, अदत्तादान प्रत्यय दंड, आध्यात्मिक दंड, मानप्रत्यय दंड, मित्रद्वेषप्रत्यय दंड, मायाप्रत्यय दंड, लोभप्रत्यय दंड और ईर्यापथिक दंड ।
सौधर्म-ईशान कल्पों में तेरह विमान-प्रस्तट हैं । सौधर्मावतंसक विमान साढ़े बारह लाख योजन आयामविष्कम्भ वाला है। इसी प्रकार ईशानावतंसक विमान भी जानना । जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की जाति कुलकोटियाँ साढ़े बारह लाख हैं।
प्राणायु नामक बारहवें पूर्व के तेरह वस्तु नामक अर्थाधिकार कहे गए हैं।
गर्भज पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक जीवों में तेरह प्रकार के योग या प्रयोग होते हैं । जैसे-सत्य मनःप्रयोग, मृषा मनःप्रयोग, सत्यमृषामनःप्रयोग, असत्यामृषामनःप्रयोग, सत्यवचनप्रयोग, मृषावचनप्रयोग, सत्यमषावचनप्रयोग, असत्यामृषावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग, वैक्रियशरीरकायप्रयोग, वैक्रिय-मिश्रशरीरकायप्रयोग और कार्मणशरीरकायप्रयोग।
सूर्यमंडल एक योजन के इकसठ भागों में से तेरह भाग (से न्यून अर्थात्) ४८/६१ योजन के विस्तार वाला कहा गया है।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति तेरह पल्योपम कही गई है । पाँचवी धूमप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति तेरह सागरोपम कही गई है।
सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति तेरह पल्योपम कही गई है।
लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति तेरह सागरोपम है । वहाँ जो देव वज्र, सुवज्र, वज्रावर्त (वज्रप्रभ), वज्रकान्त, वज्रवर्ण, वज्रलेश्य, वज्ररूप, वज्रशृंग, वज्रसृष्ट, वज्रकूट, वज्रोत्तरावतंसक, वइर, वइरावर्त, वइरप्रभ, वइरकान्त, वइरवर्ण, वइरलेश्य, वइररूप, वइरशृंग, वइरसृष्ट, वइरकूट, वइरोत्तरावतंसक, लोक, लोकावर्त, लोकप्रभ, लोककान्त, लोकवर्ण, लोकलेश्य, लोकरूप, लोकशृंग, लोकसृष्ट, लोककूट और लोकोत्तरावतंसक नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेरह सागरोपम कही गई है । वे तेरह अर्धमासों के बाद आन-प्राण-उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के तेरह हजार वर्ष के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो तेरह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
समवाय-१३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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