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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक सूत्र - २८३
इन शिबिकाओं को पूर्व की ओर (वैमानिक) देव, दक्षिण पार्श्व में नागकुमार, पश्चिम पार्श्व में असुरकुमार और उत्तर पार्श्व में गरुड़कुमार देव वहन करते हैं । सूत्र - २८४
ऋषभदेव विनीता नगरी से, अरिष्टनेमि द्वारावती से और शेष सर्व तीर्थंकर अपनी-अपनी जन्मभूमियों से दीक्षा-ग्रहण करने के लिए नीकले थे । सूत्र - २८५
सभी चौबीसों जिनवर एक दूष्य (इन्द्र-समर्पित दिव्य वस्त्र) से दीक्षा-ग्रहण करने के लिए नीकले थे। न कोई अन्य पाखंडी लिंग से दीक्षित हुआ, न गृहीलिंग से और न कुलिंग से दीक्षित हुआ । (किन्तु सभी जिन-लिंग से ही दीक्षित हुए थे ।) सूत्र - २८६
दीक्षा-ग्रहण करने के लिए भगवान महावीर अकेले ही घर से नीकले थे । पार्श्वनाथ और मल्लि जिन तीनतीन सौ पुरुषों के साथ नीकले । तथा भगवान वासुपूज्य छह सौ पुरुषों के साथ नीकले थे। सूत्र - २८७
भगवान ऋषभदेव चार हजार उग्र, भोग राजन्य और क्षत्रिय जनों के परिवार के साथ दीक्षा ग्रहण करने के लिए घर से नीकले थे । शेष उन्नीस तीर्थंकर एक-एक हजार पुरुषों के साथ नीकले थे। सूत्र - २८८
सुमति देव नित्य भक्त के साथ, वासुपूज्य चतुर्थ भक्त के साथ, पार्श्व और मल्ली अष्टमभक्त के साथ और शेष बीस तीर्थंकर षष्ठभक्त के नियम के साथ दीक्षित हुए थे। सूत्र-२८९-२९४
इन चौबीसो तीर्थंकरों को प्रथम बार भिक्षा देने वाले चौबीस महापुरुष हुए हैं । जैसे- १. श्रेयांस, २. ब्रह्मदत्त, ३. सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. पद्म, ६. सोमदेव, ७. माहेन्द्र, ८. सोमदत्त, ९. पुष्य, १०. पुनर्वसु, ११. पूर्णनन्द, १२. सुनन्द, १३. जय, १४. विजय, १५. धर्मसिंह, १६. सुमित्र, १७. वर्गसिंह, १८. अपराजित, १९. विश्वसेन, २०. वृषभसेन, २१. दत्त, २२. वरदत्त, २३. धनदत्त और, २४. बहुल, ये क्रम से चौबीस तीर्थंकरों के पहली बार आहारदान करने वाले जानना चाहिए।
इन सभी विशुद्ध लेश्या वाले और जिनवरों की भक्ति से प्रेरित होकर अंजलिपुट से उस काल और उस समय में जिनवरेन्द्र तीर्थंकरों को आहार का प्रतिलाभ कराया ।
लोकनाथ भगवान ऋषभदेव को एक वर्ष के बाद प्रथम भिक्षा प्राप्त हुई। शेष सब तीर्थंकरों को प्रथम भिक्षा दूसरे दिन प्राप्त हुई। सूत्र - २९५
लोकनाथ ऋषभदेव को प्रथम भिक्षा में इक्षुरस प्राप्त हुआ । शेष सभी तीर्थंकरों को प्रथम भिक्षा में अमृतरस के समान परम-अन्न (खीर) प्राप्त हुआ। सूत्र - २९६
सभी तीर्थंकर जिनों ने जहाँ जहाँ प्रथम भिक्षा प्राप्त की, वहाँ वहाँ शरीरप्रमाण ऊंची वसुधारा की वर्षा हुई। सूत्र- २९७-३००
इन चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस चैत्यवृक्ष थे। जैसे-१. न्यग्रोध (वट), २. सप्तपर्ण, ३. शाल, ४. प्रियाल, ५. प्रियंगु, ६. छत्राह, ७. शिरीष, ८. नागवृक्ष, ९. साली १०. पिलंखुवृक्ष । तथा-११. तिन्दुक, १२. पाटल, १३. जम्बु, १४. अश्वत्थ (पीपल), १५. दधिपर्ण, १६. नन्दीवृक्ष, १७. तिलक, १८. आम्रवृक्ष, १९. अशोक, २०. चम्पक, २१. बकुल, २२. वेत्रसवृक्ष, २३. धातकीवृक्ष और २४. वर्धमान का शालवृक्ष । ये चौबीस तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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