Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 90
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक सूत्र - ३०१ वर्धमान भगवान का चैत्यवृक्ष बत्तीस धनुष ऊंचा था, वह नित्य-ऋतुक या अर्थात् प्रत्येक ऋतु में उसमें पत्र -पुष्प आदि समृद्धि विद्यमान रहती थी। अशोकवृक्ष सालवृक्ष से आच्छन्न (ढंका हुआ) था। सूत्र- ३०२ ऋषभ जिन का चैत्यवक्ष तीन गव्यति (कोश) ऊंचा था । शेष तीर्थंकरों के चैत्यवक्ष उनके शरीर की ऊंचाई से बारह गुण ऊंचे थे। सूत्र - ३०३ जिनवरों के ये सभी चैत्यवृक्ष छत्र-युक्त, ध्वजा-पताका-सहित, वेदिका-सहित तोरणों से सुशोभित तथा सुरों, असुरों और गरुडदेवों से पूजित थे । सूत्र-३०४-३०७ इन चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस प्रथम शिष्य थे। जैसे- १. ऋषभदेव के प्रथम शिष्य ऋषभसेन और अजितजिन के प्रथम शिष्य सिंहसेन थे । पुनः क्रम से ३. चारु, ४. वज्रनाभ, ५. चमर, ६. सुव्रत, ७. विदर्भ, ८. दत्त, ९. वराह, १०. आनन्द, ११. गोस्तुभ, १२. सुधर्म, १३. मन्दर, १४. यश, १५. अरिष्ट, १६. चक्ररथ, १७. स्वयम्भू, १८. कुम्भ, १९. इन्द्र, २०. कुम्भ, २१. शुभ, २२. वरदत्त, २३. दत्त और २४. इन्द्रभूति प्रथम शिष्य हुए। ये सभी उत्तम उच्चकुल वाले, विशुद्ध वंश वाले और गुणों से संयक्त थे और तीर्थ-प्रवर्तक जिनवरों के प्रथम शिष्य थे। सूत्र-३०८-३११ ___ इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस प्रथम शिष्याएं थीं । जैसे-१. ब्राह्मी, २. फल्गु, ३. श्यामा, ४. अजिता, ५. काश्यपी, ६. रति, ७. सोमा, ८. सुमना, ९. वारुणी, १०. सुलसा, ११. धारिणी, १२. धरणी, १३. धरणिधरा, १४. पद्मा, १५. शिवा, १६. शुचि, १७. अंजुका, १८. भावितात्मा, १९. बन्धमती, २०. पुष्पवती, २१. आर्या अमिला, २२. यशस्विनी, २३. पुष्पचूला और २४. आर्या चन्दना । ये सब उत्तम उन्नत कुल वाली, विशुद्ध वाली, गुणों से संयुक्त थीं और तीर्थ-प्रवर्तक जिनवरों की प्रथम शिष्याएं हईं। सूत्र-३१२-३९४ इस जम्बूद्वीप के इसी भारत वर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में उत्पन्न हुए चक्रवर्तियों के बारह पिता थे। जैसे-१. ऋषभजिन, २. सुमित्र, ३. विजय, ४. समुद्रविजय, ५. अश्वसेन, ६. विश्वसेन, ७. सूरसेन, ८. कार्तवीर्य, ९. पद्मोत्तर, १०. महाहरि, ११. विजय और १२. ब्रह्म । ये बारह चक्रवर्तियों के पिताओं के नाम हैं। सूत्र-३१५ इसी जम्बद्वीप के भारतवर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में बारह चक्रवर्तियों की बारह माताएं हई । जैसेसुमंगला, यशस्वती, भद्रा, सहदेवी, अचिरा, श्री, देवी, तारा, ज्वाला, मेरा, वप्रा और बारहवी चुल्लिनी । सूत्र-३१६ इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में बारह चक्रवर्ती हुए । जैसेसूत्र - ३१७, ३१८ १. भरत, २. सगर, ३. मधवा, ४. राजशार्दूल सनत्कुमार, ५. शान्ति, ६. कुन्थु, ७. अर, ८. कौरव-वंशी सुभूम, ९. महापद्म, १०. राजशार्दूल हरिषेण, ११. जय और १२. ब्रह्मदत्त । सूत्र-३१९, ३२० इन बारह चक्रवर्तियों के बारह स्त्रीरत्न थे । जैसे- १. प्रथम सुभद्रा, २. भद्रा, ३. सुनन्दा, ४. जया, ५. विजया, ६. कृष्णश्री, ७. सूर्यश्री, ८. पद्मश्री, ९. वसुन्धरा, १०. देवी, ११. लक्ष्मीवती और १२. कुरुमती । ये स्त्रीरत्नों के नाम हैं। सूत्र - ३२१ इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इसी अवसर्पिणी में नौ बलदेवों और नौ वासुदेवों के नौ पिता हुए । जैसे मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 90

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