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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक सूत्र-२५७-२५९
इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में अतीतकाल की अवसर्पिणी में दश कुलकर हुए थे । जैसे- शतंजल, शतायु, अजितसेन, अनन्तसेन, कार्यसेन, भीमसेन, महाभीमसेन । तथा दढरथ, दशरथ और शतरथ । सूत्र - २५९, २६०
इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में सात कुलकर हुए । जैसे- विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशष्मान्, अभिचन्द्र, प्रसेनजित, मरुदेव और नाभिराय । सूत्र - २६१, २६२
इन सातों ही कुलकरों की सात भार्याएं थीं । जैसे- चन्द्रयशा, चन्द्रकान्ता, सुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुष्कान्ता, श्रीकान्ता और मरुदेवी । ये कुलकरों की पत्नीयों के नाम हैं। सूत्र - २६३-२६७
इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पिता हए । जैसे १.नाभि-राय, २. जितशत्रु, ३. जितारि, ४. संवर, ५. मेघ, ६. घर, ७. प्रतिष्ठ, ८. महासेन ९. सुग्रीव, १०. दृढ़रथ, ११. विष्णु, १२. वसुपूज्य, १३. कृतवर्मा, १४. सिंहसेन, १५. भानु, १६. विश्वसेन, १७. सूरसेन, १८. सुदर्शन, १९. कुम्भराज, २०. सुमित्र, २१. विजय, २२. समुद्रविजय, २३. अश्वसेन और २४. सिद्धार्थ क्षत्रिय । तीर्थ के प्रवर्तक जिनवरों के ये पिता उच्च कुल और उच्च विशुद्ध वंश वाले तथा उत्तम गुणों से संयुक्त थे। सूत्र-२६८-२७०
इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी में चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस माताएं हुई हैं । जैसे-१. मरु-देवी, २. विजया, ३. सेना, ४. सिद्धार्था, ५. मंगला, ६. सुसीमा, ७. पृथ्वी, ८. लक्ष्मणा, ९. रामा, १०. नन्दा, ११. विष्णु, १२. जया, १३. श्यामा, १४. सुयशा, १५. सुव्रता, १६. अचिरा, १७. श्री, १८. देवी, १९. प्रभावती, २०. पद्मा, २१. वप्रा, २२. शिवा, २३. वामा और २४. त्रिशला देवी । ये चौबीस जिन-माताएं हैं। सूत्र-२७१-२७५
इन चौबीस तीर्थंकरों के पूर्वभव के चौबीस नाम थे । जैसे- १. वज्रनाभ, २. विमल, ३. विमलवाहन, ४. धर्मसिंह, ५. सुमित्र, ६. धर्ममित्र, ७. सुन्दरबाहु, ८. दीर्घबाहु, ९. युगबाहु, १०. लष्ठबाहु, ११. दत्त, १२. इन्द्रदत्त, १३. सुन्दर, १४. माहेन्द्र, १५. सिंहस्थ, १६. मेघरथ, १७. रुक्मी, १८. सुदर्शन, १९. नन्दन, २०. सिंहगिरि, २१. अदीनशत्रु, २२. शंख, २३. सुदर्शन और २४. नन्दन । ये इसी अवसर्पिणी के तीर्थंकरों के पूर्वभव के नाम जानना चाहिए। सूत्र - २७६-२८०
इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस शिबिकाएं (पालकियाँ) थीं । (जिन पर बिराजमान होकर तीर्थंकर प्रव्रज्या के लिए वन में गए ।) जैसे- १. सुदर्शना शिबिका, २. सुप्रभा, ३. सिद्धार्था, ४. सुप्रसिद्धा, ५. विजया, ६. वैजयन्ती, ७. जयन्ती, ८. अपराजिता, ९. अरुणप्रभा, १०. चन्द्रप्रभा, ११. सूर्यप्रभा, १२. अग्निप्रभा, १३. सुप्रभा, १४. विमला, १५. पंचवर्णा, १६. सागरदत्ता, १७. नागदत्ता, १८. अभयकरा, १९. निवृत्तिकरा, २०. मनोरमा, २१. मनोहरा, २२. देवकुरा, २३. उत्तरकुरा और २४. चन्द्रप्रभा । ये सभी शिबिकाएं विशाल थीं । सर्वजगत्-वत्सल सभी जिनवरेन्द्रों की ये शिबिकाएं सर्व ऋतुओं में सुख-दायिनी उत्तम और शुभ कान्ति से युक्त होती हैं। सूत्र - २८१
जिन-दिक्षा-ग्रहण करने के लिए जाते समय तीर्थंकरों की इन शिबिकाओं को सबसे पहले हर्ष से रोमांचित मनुष्य अपने कंधों पर उठाकर ले जाते हैं । पीछे असुरेन्द्र, सुरेन्द्र और नागेन्द्र उन शिबिकाओं को लेकर चलते हैं। सूत्र-२८२
चंचल चपल कुण्डलों के धारक और अपनी ईच्छानुसार विक्रियामय आभूषणों को धारण करने वाले वे देवगण सुर-असुरों से वन्दित जिनेन्द्रों की शिबिकाओं को वहन करते हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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