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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक भगवन् ! असुरकुमार देव किस संहनन वाले कहे गए हैं ? गौतम ! असुरकुमार देवों के छहों संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता है । वे असंहननी होते हैं, क्योंकि उनके शरीर में हड्डी नहीं होती है, नहीं शिराएं होती हैं, और नहीं स्नायु होती हैं । जो पुद्गल इष्ट, कान्त, प्रिय (आदेय, शुभ) मनोज्ञ, मनाम और मनोभिराम होते हैं, उनसे उनका शरीर संहनन-रहित ही परिणत होता है । इस प्रकार नागकुमारों से लेकर स्तनितकुमार देवों तक जानना चाहिए । अर्थात् उनके कोई संहनन नहीं होता।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव किस संहनन वाले कहे गए हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव सेवार्तसंहनन वाले कहे गए हैं । इसी प्रकार अप्कायिक से लेकर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक तक के सब जीव सेवार्त संहनन वाले होते हैं । गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों प्रकार के संहनन वाले होते हैं । सम्मूर्छिम मनुष्य सेवा संहनन वाले होते हैं । गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों प्रकार के संहनन वाले होते हैं । जिस प्रकार असुरकुमार देव संहननरहित हैं, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी संहनन-रहित होते हैं।
भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! संस्थान छह प्रकार का है-समचतुरस्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान, सादिया स्वाति संस्थान, वामन संस्थान, कुब्जक संस्थान, हंडक संस्थान ।
भगवन् ! नारकी जीव किस संस्थान वाले कहे गए हैं ? गौतम ! नारक जीव हंडकसंस्थान वाले कहे गए हैं। भगवन् ! असुरकुमार देव किस संस्थान वाले होते हैं ? गौतम ! असुरकुमार देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं।
पृथ्वीकायिक जीव मसूरसंस्थान वाले कहे गए हैं । अप्कायिक जीव स्तिबुक (बिन्दु) संस्थान वाले कहे गए हैं तेजस्कायिक जीव सूचीकलाप संस्थान वाले (सूइयों के पुंज के समान आकार वाले) कहे गए हैं । वायुकायिक जीव पताका-(ध्वज) संस्थान वाले कहे गए हैं । वनस्पतिकायिक जीव नाना प्रकार के संस्थान वाले कहे गए हैं।
द्वीन्द्रिय, त्रिन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यंच जीव हुंडक संस्थान वाले और गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों संस्थान वाले कहे गए हैं । सम्मूर्छिम मनुष्य हुंडक संस्थान वाले तथा गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों संस्थान वाले कहे गए हैं।
जिस प्रकार असुरकुमार देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं। सूत्र - २५४
भगवन् ! वेद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! वेद तीन हैं-स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद ।
भगवन् ! नारक जीव क्या स्त्री वेद वाले हैं, अथवा पुरुष वेद वाले हैं ? गौतम ! नारक जीव न स्त्री वेद वाले हैं, न पुरुष वेद वाले हैं, किन्तु नपुंसक वेद वाले होते हैं।
भगवन् ! असुरकुमार देव स्त्री वेद वाले हैं, पुरुष वेद वाले हैं अथवा नपुंसक वेद वाले हैं ? गौतम ! असुरकुमार देव स्त्री वेद वाले हैं, पुरुष वेद वाले हैं, किन्तु नपुंसक वेद वाले नहीं होते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमार देवों तक जानना चाहिए।
पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच और सम्मूर्छिम मनुष्य नपुंसक वेद वाले होते हैं । गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य और गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच तीनों वेदों वाले होते हैं। सूत्र - २५५, २५६
उस दुःषम-सुषमा काल में और उस विशिष्ट समय में (जब भगवान महावीर धर्मोपदेश करते हुए विहार कर रहे थे, तब) कल्पसूत्र के अनुसार समवसरण का वर्णन वहाँ तक करना चाहिए, जब तक कि सापतय (शिष्यसन्तान-यक्त) सधर्मास्वामी और निरपत्य (शिष्य-सन्तान-रहित शेष सभी) गणधर देव व्युच्छिन्न हो गए, अर्थात् सिद्ध हो गए।
इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में अतीतकाल की उत्सर्पिणी में सात कुलकर उत्पन्न हुए थे । जैसे- मित्रदाम, सुदाम, सुपार्श्व, स्वयम्प्रभ, विमलघोष, सुघोष और महाघोष ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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