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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/सूत्रांक वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी । नौ दशार मंडल होंगे, जो उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष यावत् सर्वाधिक राजतेज रूप लक्ष्मी से देदीप्यमान दो-दो राम-केशव (बलदेव-वासुदेव) भाई-भाई होंगे। उनके नौ प्रतिशत्रु होंगे, उनके नौ पूर्वभव के नाम होंगे, उनके नौ धर्माचार्य होंगे, उनकी नौ निदान-भूमियाँ होंगी, निदान के नौ कारण होंगे
इसी प्रकार से आगामी उत्सर्पिणी काल में ऐरवतक्षेत्र में होने वाले बलदेवादि का मुक्ति-गमन, स्वर्ग से आगमन, मनुष्यों में उत्पत्ति और मुक्ति का भी कथन करना ।
इसी प्रकार भरत और ऐरवत इन दोनों क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी काल में होने वाले वासुदेव आदि का कथन करना चाहिए। सूत्र - ३८३
इस प्रकार यह अधिकृत समवायाङ्ग सूत्र अनेक प्रकार के भावों और पदार्थों को वर्णन करने के रूप से कहा गया है। जैसे-इसमें कुलकरों के वंशों का वर्णन किया गया है । इसी प्रकार तीर्थंकरों के वंशों का, चक्रवतियों के वंशों का, दशार-मंडलों का, गणधरों के वंशों का, ऋषियों के वंशों का, यतियों के वंशों का और मुनियों के वंशों का भी वर्णन किया गया है।
परोक्षरूप से त्रिकालवर्ती समस्त अर्थों का परिज्ञान कराने से यह श्रुतज्ञान है, श्रुतरूप प्रवचन-पुरुष का अंग होने से यह श्रुताङ्ग है, इसमें समस्त सूत्रों का अर्थ संक्षेप से कहा गया है, अतः यह श्रुतसमास है, श्रुत का समुदाय रूप वर्णन करने से यह 'श्रुतस्कन्ध' है, समस्त जीवादि पदार्थों का समुदायरूप कथन करने से यह 'समवाय' कहलाता है, एक दो तीन आदि की संख्या के रूप से संख्यान का वर्णन करने से यह संख्या' नाम से भी कहा जाता है । इसमें आचारादि अंगों के समान श्रुतस्कन्ध आदि का विभाग न होने से इसे 'अध्ययन' भी कहते हैं।
इस प्रकार श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी को लक्ष्य करके कहते हैं कि इस अंग को भगवान महावीर के समीप जैसा मैनें सूना, उसी प्रकार से मैंने तुम्हें कहा है।
समवाय प्रकीर्णक का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ४ समवाय अंगसूत्र-४ का हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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