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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र- ४, 'समवाय '
युद्ध में पराजय, ६. स्त्री-अनुराग, ७. गोष्ठी, ८. पर-ऋद्धि और ९. मातृका (माता) ।
सूत्र - ३४०-३४२
इन नवीं वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु (प्रतिवासुदेव) थे । जैसे- १. अश्वग्रीव, २. तारक, ३. मेरक, ४. मधुकैटभ, ५. निशुम्भ, ६. बलि, ७. प्रभराज (प्रह्लाद), ८. रावण और ९. जरासन्ध । ये कीर्तिपुरुष वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु थे । ये सभी चक्रयोधी थे और सभी अपने ही चक्रों से युद्ध में मारे गए ।
सूत्र - ३४३
उक्त नौ वासुदेवों में से एक मरकर सातवी पृथ्वी में, पाँच वासुदेव छठी पृथ्वी में, एक पाँचवी में, एक चौथी में और एक कृष्ण तीसरी पृथ्वी में गए ।
सूत्र - ३४४
सभी राम (बलदेव) अनिदानकृत होते हैं और सभी वासुदेव पूर्व भव में निदान करते हैं। सभी राम मरण कर ऊर्ध्वगामी होते हैं और सभी वासुदेव अधोगामी होते हैं ।
सूत्र
समवाय/ सूत्रांक
- ३४५
आठ राम (बलदेव) अन्तकृत् अर्थात् कर्मों का क्षय करके संसार का अन्त करने वाले हुए । एक अन्तिम बलदेव ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुए । जो आगामी भव में एक गर्भवास लेकर सिद्ध होंगे ।
सूत्र
१- ३४६-३५१
इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए - १. चन्द्र के समान मुख वाले सुचन्द्र, २. अग्निसेन, ३. नन्दिसेन, ४. व्रतधारी ऋषिदत्त और ५. सोमचन्द्र की मैं वन्दना करता हूँ । ६. युक्तिसेन, ७. अजितसेन, ८. शिवसेन, ९. बुद्ध, १०. देवशर्म, ११. निक्षिप्तशस्त्र (श्रेयांस) की मैं सदा वन्दना करता हूँ | तथा- १२. असंज्वल, १३. जिनवृषभ और १३. अमितज्ञानी अनन्त जिन की मैं वन्दना करता हूँ । १५. कर्मरज-रहित उपशान्त और १६. गुप्तिसेन की भी मैं वन्दना करता हूँ । १७. अतिपार्श्व, १८. सुपार्श्व तथा १९. देवेश्वरों से वन्दित मरुदेव, २०. निर्वाण को प्राप्त घर और २१. प्रक्षीण दुःख वाले श्यामकोष्ठ, २२. रागविजेता अग्निसेन । २३. क्षीणरागी अग्निपुत्र और राग-द्वेष का क्षय करने वाले, सिद्धि को प्राप्त चौबीसवे वारिषेण की मैं वन्दना करता हूँ ।
सूत्र - ३५२, ३५३
इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर होंगे । जैसे-१. मितवाहन, २. सुभूम, ३. सुप्रभ, ४. स्वयंप्रभ, ५. दत्त, ६. सूक्ष्म और ७. सुबन्धु । ये आगामी उत्सर्पिणी में सात कुलकर होंगे । सूत्र
- ३५४
सूत्र
इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में दश कुलकर होंगे - १. विमलवाहन, २ . सीमंकर ३. सीमंधर, ४. क्षेमंकर, ५. क्षेमंधर, ६. दृढधनु, ७. दशधनु, ८. शतधनु, ९. प्रतिश्रुति और १०. सुमति । इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर होंगे ।
- ३५५-३५९
१. महापद्म, २. सूरदेव, ३. सुपार्श्व, ४. स्वयंप्रभ, ५. सर्वानुभूति, ६. देवश्रुत, ७. उदय, ८. पेढ़ालपुत्र, ९. प्रोष्ठिल, १०. शतकीर्ति, ११. मुनिसुव्रत, १२. सर्वभाववित्, १३. अमम, १४. निष्कषाय, १५. निष्पुलाक, १६. निर्मम, १७. चित्रगुप्त, १८. समाधिगुप्त, १९. संवर, २०. अनिवृत्ति, २१. विजय, २२. विमल, २३. देवोपपात और २४. अनन्तविजय ये चौबीस तीर्थंकर भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में धर्मतीर्थ की देशना करने वाले होंगे
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सूत्र - ३६०-३६४
इन भविष्यकालीन चौबीस तीर्थंकरों के पूर्व भव के चौबीस नाम इस प्रकार हैं, यथा- १. श्रेणिक, २. सुपार्श्व, ३. उदय, ४. प्रोष्ठिल अनगार, ५. दृढायु, ६. कार्तिक, ७. शंख, ८. नन्द, ९. सुनन्द, १०. शतक, ११. देवकी, १२. सात्यकि, १३. वासुदेव, १४. बलदेव, १५. रोहिणी, १६. सुलसा, १७. रेवती, १८. शताली, १९.
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( समवाय)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
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