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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-१९ सूत्र-४६-४८
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के (प्रथम श्रुतस्कन्ध के) उन्नीस अध्ययन कहे गए हैं । जैसे-१. उत्क्षिप्तज्ञात, २. संघाट, ३. अंड, ४. कूर्म, ५. शैलक, ६. तुम्ब, ७. रोहिणी, ८. मल्ली , ९. माकंदी, १०. चन्द्रिमा । ११. दावद्रव, १२. उदकज्ञात, १३. मंडूक, १४. तेतली, १५. नन्दिफल, १६. अपरकंका, १७. आकीर्ण, १८. सुंसुमा और १९. पुण्डरीकज्ञात । सूत्र -४९
जम्बूद्वीप में सूर्य उत्कृष्ट एक हजार नौ सौ योजन ऊपर और नीचे तपते हैं।
शुक्र महाग्रह पश्चिम दिशा से उदित होकर उन्नीस नक्षत्रों के साथ सहगमन करता हुआ पश्चिम दिशा में अस्तगत होता है।
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की कलाएं उन्नीस छेदनक (भागरूप) कही गई हैं।
उन्नीस तीर्थंकर अगार-वास में रहकर फिर मुंडित होकर अगार से अनगार प्रव्रज्या को प्राप्त हुए-गृहवास त्यागकर दीक्षित हुए।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति उन्नीस पल्योपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति उन्नीस पल्योपम कही गई है।
सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति उन्नीस पल्योपम है । आनत कल्प में कितनेक देवों की उत्कृष्ट स्थिति उन्नीस सागरोपम है । प्राणत कल्प में कितनेक देवों की जघन्य स्थिति उन्नीस सागरोपम कही गई है। वहाँ जो देव आनत, प्राणत, नत, विनत, घन, सुषिर, इन्द्र, इन्द्रकान्त और इन्द्रोत्तरावतंसक नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति उन्नीस सागरोपम कही गई है । वे देव साढ़े नौ मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं। उन देवों के उन्नीस हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो उन्नीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दःखों का अन्त करेंगे।
समवाय-१९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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